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"उद्बोधन / महावीर प्रसाद ‘मधुप’" के अवतरणों में अंतर

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महकने दो जीवन-उद्यान।।
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न समझो तुम अपने को दीन,
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महकने दो जीवन-उद्यान।।
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महकने दो जीवन-उद्यान।।
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पराश्रित होना भारी भूल,
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राह में फूल मिलें या शूल,
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निरंतर चलना है सुखमूल,
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निशा जाती, दे स्वर्ण-विहान।
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महकने दो जीवन-उद्यान।।
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सदा रसना में मधुरस घोल,
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यही है उन्नति का सोपान।
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महकने दो जीवन-उद्यान।।
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सुझाया जो पुरखों ने पंथ,
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नियम सिखलाते जो सद्ग्रन्थ,
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उन्हीं पर श्रद्धा लिए अनन्त,
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निभाते रहो आयु-पर्यन्त,
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समझ कर साथी निज भगवान।
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महकने दो जीवन-उद्यान।।
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अहर्निश अर्जित करो विवेक,
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करो सत्कर्मों का अभिषेक,
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एक हो लगन एक हो टेक,
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जियो दुनिया में बन कर नेक,
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सफलता पाकर बनो महान।
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महकने दो जीवन-उद्यान।।
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23:36, 17 जून 2014 के समय का अवतरण

करो अध्यात्म-सुध का पान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।
रखो मन में न भावना हीन,
न समझो तुम अपने को दीन,
रहे मुख-मंडल नहीं मलीन,
रहो शुभ चिंतन में लवलीन,
ईश की बनो श्रेष्ठ संतान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

न कोई फटके पास विकार,
पनपते रहें सदा सुविचार,
सभी से हो निश्छल व्यवहार,
सतत हो प्राणिमात्र से प्यार,
रहे कर्त्तव्यों का ध्रुव-ध्यान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

न डरना देख समय विपरीत,
कभी है हार, कभी है जीत,
लौट कर आता नहीं अतीत,
निभाना वर्तमान से प्रीत
पंथ पर पाँव रहें गतिमान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

धैर्य का दामन कर में थाम,
साधनारत रहना वसु याम,
कर्म करते रहना निष्काम,
निबल के रक्षक होते राम,
न सब दिन होते एक समान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

भाग्य होता श्रम से अनुकूल,
पराश्रित होना भारी भूल,
राह में फूल मिलें या शूल,
निरंतर चलना है सुखमूल,
निशा जाती, दे स्वर्ण-विहान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

सदा रसना में मधुरस घोल,
बोलना सबसे मीठे बोल,
मिला मानव-जीवन अनमोल,
गँवाना इसे न कौड़ी मोल,
यही है उन्नति का सोपान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

सुझाया जो पुरखों ने पंथ,
नियम सिखलाते जो सद्ग्रन्थ,
उन्हीं पर श्रद्धा लिए अनन्त,
निभाते रहो आयु-पर्यन्त,
समझ कर साथी निज भगवान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।

अहर्निश अर्जित करो विवेक,
करो सत्कर्मों का अभिषेक,
एक हो लगन एक हो टेक,
जियो दुनिया में बन कर नेक,
सफलता पाकर बनो महान।
महकने दो जीवन-उद्यान।।