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भारत कॉफी हाउस / विजय कुमार

1 byte added, 17:25, 3 अक्टूबर 2014
मक्खियों से भिनभिनाते टेबल पर उसे रखता हूं
मैं उसके हाशिये पर कुछ लिखना चाहता हूं
लेकिन शब्द कहाँ हैं ? कहाँ हैं शब्द ?
तभी सुराखों वाली बनियान में वह छोकरा
आकर टेबल पर पोंछा लगाता है
मेरी बुदबुदाहट का क्या कोई अर्थ है ?
मैं पूछता हूं यहां
इस धूल और रक्त और आंसू और पावडर और पेशाब की मिलीजुली गंध वाली किसी जगह में
यह कौन सा समय है मेरा ?
मेरी बुदबुदाहट का क्या कोई अर्थ है? मैं किसी समय में नहीं मैं पूछता हूं महान कवि की
किताब के फटे हुए पन्नों से
सुराखों वाली बनियान में वह छोकरा हंसता है
एक पुराने ढब के गाने को सुनने
एक गंदी बस्ती के पुराने रेस्त्रां में
 
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