भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आत्मबोध / कन्हैयालाल नंदन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
| (2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
| पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
| − | + | {{KKGlobal}} | |
| − | + | {{KKRachna | |
| + | |रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन | ||
| + | }} | ||
| + | {{KKCatKavita}} | ||
| + | <poem> | ||
| + | यह सब कुछ मेरी आंखों के सामने हुआ! | ||
| − | + | आसमान टूटा, | |
| + | उस पर टंके हुये | ||
| + | ख्वाबों के सलमे-सितारे | ||
| + | बिखरे. | ||
| + | देखते-देखते दूब के दलों का रंग | ||
| + | पीला पड़ गया | ||
| + | फूलों का गुच्छा सूख कर खरखराया. | ||
| − | + | और ,यह सब कुछ मैं ही था | |
| − | + | यह मैं | |
| − | + | बहुत देर बाद जान पाया. | |
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | + | ||
| − | और ,यह सब कुछ मैं ही था | + | |
| − | यह मैं | + | |
| − | बहुत देर बाद जान पाया. | + | |
09:49, 1 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
यह सब कुछ मेरी आंखों के सामने हुआ!
आसमान टूटा,
उस पर टंके हुये
ख्वाबों के सलमे-सितारे
बिखरे.
देखते-देखते दूब के दलों का रंग
पीला पड़ गया
फूलों का गुच्छा सूख कर खरखराया.
और ,यह सब कुछ मैं ही था
यह मैं
बहुत देर बाद जान पाया.
