भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चटरबण्टू / पढ़ीस" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पढ़ीस |संग्रह=चकल्लस / पढ़ीस }} {{KKCatKavi...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 28: | पंक्ति 28: | ||
चटपटचंद चटर-बण्टू। | चटपटचंद चटर-बण्टू। | ||
</poem> | </poem> | ||
+ | {{KKMeaning}} |
16:06, 7 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
तुम कहाँ ति बनि-ठनि आयउ लाला,
चटपटचंद चटर-बण्टू।
युहु ट्वाना-टटका पढ़ि आयउ का,
चटपटचंद चटर-बण्टू।
द्याखति मा ददुआ नीक-नीक मुलु,
बिसु-रस-भरे कनक-घट हउ।
नस-नस मा माहुरू डँसा चह्यउ तुम,
चटपटचंद चटर-बण्टू।
यह खुबयि मुरहटी<ref>शैतानी, बदमाशी</ref> बूँकति हउ का,
हउ तउ काल्हिन के मुरहा!
बुढ़उ खाँसे उयि जागे द्याखउ।
चटपटचंद चटर-बण्टू।
तुम लाखु तना ते झरपट्टउ<ref>झपटना</ref> का,
ठाढ़यि रहिहउ मुँहु बाये।
अस अण्टा-चित्तु-गफील<ref>गलतफ़मी में रहने वाला, खब्तुल्हवास</ref> गिरउ तुम,
चटपटचंद चटर-बण्टू।
तुम अयिस ‘पढ़ीस’ ति अइँठे हउ,
जिहि का च्याला संसारू भवा।
अब अपनि पढ़ीसी चाटउ चमकू,
चटपटचंद चटर-बण्टू।
शब्दार्थ
<references/>