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"फसल / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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हल की तरह
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हम तो ज़मीन ही तैयार कर पायेंगे
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हल की तरह<br>
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कल जो भी फसल उगेगी, लहलहाएगी
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फिर भी फसल काटने<br>
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जिन्होने बीज बोए थे
मिलेगी नहीं हम को ।<br><br>
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उन्हीं के चरण परसेगी
 
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काटेंगे उसे जो फिर वो ही उसे बोएंगे
हम तो ज़मीन ही तैयार कर पायेंगे<br>
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हम तो कहीं धरती के नीचे दबे सोयेंगे ।
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हम तो कहीं धरती के नीचे दबे सोयेंगे ।<br><br>
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09:30, 15 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

हल की तरह
कुदाल की तरह
या खुरपी की तरह
पकड़ भी लूँ कलम तो
फिर भी फसल काटने
मिलेगी नहीं हम को ।

हम तो ज़मीन ही तैयार कर पायेंगे
क्रांतिबीज बोने कुछ बिरले ही आयेंगे
हरा-भरा वही करेंगें मेरे श्रम को
सिलसिला मिलेगा आगे मेरे क्रम को ।

कल जो भी फसल उगेगी, लहलहाएगी
मेरे ना रहने पर भी
हवा से इठलाएगी
तब मेरी आत्मा सुनहरी धूप बन बरसेगी
जिन्होने बीज बोए थे
उन्हीं के चरण परसेगी
काटेंगे उसे जो फिर वो ही उसे बोएंगे
हम तो कहीं धरती के नीचे दबे सोयेंगे ।