भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पतवार / शिवमंगल सिंह ‘सुमन’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
लेखक: [[शिवमंगल सिंह सुमन]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
[[Category:शिवमंगल सिंह सुमन]]
+
|रचनाकार=शिवमंगल सिंह सुमन
 +
|संग्रह=
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 +
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।
  
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
+
आज सिन्धु ने विष उगला है
 +
लहरों का यौवन मचला है
 +
आज ह्रदय में और सिन्धु में
 +
साथ उठा है ज्वार
  
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>
+
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।
  
आज सिन्धु ने विष उगला है<br>
+
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
लहरों का यौवन मचला है<br>
+
इस अंधड में साहस तोलो
आज ह्रदय में और सिन्धु में<br>
+
कभी-कभी मिलता जीवन में
साथ उठा है ज्वार<br><br>
+
तूफानों का प्यार
  
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>
+
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।
  
लहरों के स्वर में कुछ बोलो<br>
+
यह असीम, निज सीमा जाने
इस अंधड में साहस तोलो<br>
+
सागर भी तो यह पहचाने
कभी-कभी मिलता जीवन में<br>
+
मिट्टी के पुतले मानव ने
तूफानों का प्यार<br><br>
+
कभी ना मानी हार
  
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>
+
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।
  
यह असीम, निज सीमा जाने<br>
+
सागर की अपनी क्षमता है
सागर भी तो यह पहचाने<br>
+
पर माँझी भी कब थकता है
मिट्टी के पुतले मानव ने<br>
+
जब तक साँसों में स्पन्दन है
कभी ना मानी हार<br><br>
+
उसका हाथ नहीं रुकता है
 +
इसके ही बल पर कर डाले
 +
सातों सागर पार
  
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>
+
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।
 
+
सागर की अपनी क्षमता है<br>
+
पर माँझी भी कब थकता है<br>
+
जब तक साँसों में स्पन्दन है<br>
+
उसका हाथ नहीं रुकता है<br>
+
इसके ही बल पर कर डाले<br>
+
सातों सागर पार<br><br>
+
 
+
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।<br><br>
+

09:35, 5 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।

आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज ह्रदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।

लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।

यह असीम, निज सीमा जाने
सागर भी तो यह पहचाने
मिट्टी के पुतले मानव ने
कभी ना मानी हार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।

सागर की अपनी क्षमता है
पर माँझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार।