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+ | साधुसों संग नहि शब्दसाँ रंग नहि, | ||
+ | बोलि जाने न मुख मधुर वानी॥ | ||
+ | एक जगदीश को शीष अर्पे नहीं, | ||
+ | पाँच पच्चीस बहु बात ठानी। | ||
+ | रामको नाम निज धाम विश्राम नहि, | ||
+ | धरनि कह धरनि सो धिग्ग प्रानी॥5॥ | ||
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04:31, 20 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
जीवकी दया जेहि जीय व्यापै नहीं,
भुखे आहार प्यासे न पानी।
साधुसों संग नहि शब्दसाँ रंग नहि,
बोलि जाने न मुख मधुर वानी॥
एक जगदीश को शीष अर्पे नहीं,
पाँच पच्चीस बहु बात ठानी।
रामको नाम निज धाम विश्राम नहि,
धरनि कह धरनि सो धिग्ग प्रानी॥5॥