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"देखो-सोचो-समझो / भगवतीचरण वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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देखो, सोचो, समझो, सुनो, गुनो औ' जानो
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लेकिन अपना चेहरा जैसा है रहने दो,
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तुम जो कुछ हो वही रहोगे, मेरी मानो ।
  
देखो, सोचो, समझो, सुनो, गुनो औ' जानो<br>
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वैसे तुम चेतन हो, तुम प्रबुद्ध ज्ञानी हो
इसको, उसको, सम्भव हो निज को पहचानो<br>
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तुम समर्थ, तुम कर्ता, अतिशय अभिमानी हो
लेकिन अपना चेहरा जैसा है रहने दो,<br>
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लेकिन अचरज इतना, तुम कितने भोले हो
जीवन की धारा में अपने को बहने दो<br><br>
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ऊपर से ठोस दिखो, अन्दर से पोले हो
  
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बन कर मिट जाने की एक तुम कहानी हो ।
  
वैसे तुम चेतन हो, तुम प्रबुद्ध ज्ञानी हो<br>
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पल में रो देते हो, पल में हँस पड़ते हो,
तुम समर्थ, तुम कर्ता, अतिशय अभिमानी हो<br>
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अपने में रमकर तुम अपने से लड़ते हो
लेकिन अचरज इतना, तुम कितने भोले हो<br>
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ऊपर से ठोस दिखो, अन्दर से पोले हो<br><br>
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जमने की कोशिश में रोज़ तुम उखड़ते हो ।
  
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थोड़ी-सी घुटन और थोड़ी रंगीनी में,
अपने में रमकर तुम अपने से लड़ते हो<br>
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चुटकी भर मिरचे में, मुट्ठी भर चीनी में,
पर यह सब तुम करते - इस पर मुझको शक है,<br>
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इससे जो कुछ ज्यादा, वह सब तो लालच है
  
जमने की कोशिश में रोज़ तुम उखड़ते हो <br><br>
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दोस्त उम्र कटने दो इस तमाशबीनी में ।
  
थोड़ी-सी घुटन और थोड़ी रंगीनी में,<br>
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धोखा है प्रेम-बैर, इसको तुम मत ठानो
चुटकी भर मिरचे में, मुट्ठी भर चीनी में,<br>
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कडु‌आ या मीठा ,रस तो है छक कर छानो,
ज़िन्दगी तुम्हारी सीमित है, इतना सच है,<br>
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चलने का अन्त नहीं, दिशा-ज्ञान कच्चा है
इससे जो कुछ ज्यादा, वह सब तो लालच है<br><br>
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भ्रमने का मारग ही सीधा है, सच्चा है
  
दोस्त उम्र कटने दो इस तमाशबीनी में ।<br><br>
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जब-जब थक कर उलझो, तब-तब लम्बी तानो ।
 
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कडु‌आ या मीठा ,रस तो है छक कर छानो,<br>
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चलने का अन्त नहीं, दिशा-ज्ञान कच्चा है<br>
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भ्रमने का मारग ही सीधा है, सच्चा है<br><br>
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जब-जब थक कर उलझो, तब-तब लम्बी तानो ।<br><br>
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09:21, 30 अगस्त 2013 के समय का अवतरण

देखो, सोचो, समझो, सुनो, गुनो औ' जानो
इसको, उसको, सम्भव हो निज को पहचानो
लेकिन अपना चेहरा जैसा है रहने दो,
जीवन की धारा में अपने को बहने दो

तुम जो कुछ हो वही रहोगे, मेरी मानो ।

वैसे तुम चेतन हो, तुम प्रबुद्ध ज्ञानी हो
तुम समर्थ, तुम कर्ता, अतिशय अभिमानी हो
लेकिन अचरज इतना, तुम कितने भोले हो
ऊपर से ठोस दिखो, अन्दर से पोले हो

बन कर मिट जाने की एक तुम कहानी हो ।

पल में रो देते हो, पल में हँस पड़ते हो,
अपने में रमकर तुम अपने से लड़ते हो
पर यह सब तुम करते - इस पर मुझको शक है,
दर्शन, मीमांसा - यह फुरसत की बकझक है,

जमने की कोशिश में रोज़ तुम उखड़ते हो ।

थोड़ी-सी घुटन और थोड़ी रंगीनी में,
चुटकी भर मिरचे में, मुट्ठी भर चीनी में,
ज़िन्दगी तुम्हारी सीमित है, इतना सच है,
इससे जो कुछ ज्यादा, वह सब तो लालच है

दोस्त उम्र कटने दो इस तमाशबीनी में ।

धोखा है प्रेम-बैर, इसको तुम मत ठानो
कडु‌आ या मीठा ,रस तो है छक कर छानो,
चलने का अन्त नहीं, दिशा-ज्ञान कच्चा है
भ्रमने का मारग ही सीधा है, सच्चा है

जब-जब थक कर उलझो, तब-तब लम्बी तानो ।