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"अपनी फुलवारी की सीमा / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर
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जो हुआ निर्भय , उसे फिर डर भला किस बात का | जो हुआ निर्भय , उसे फिर डर भला किस बात का | ||
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आप 'हरसिंगार' की शाखें हिलाना छोड़िए, | आप 'हरसिंगार' की शाखें हिलाना छोड़िए, | ||
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आजकल महसूस करती है अमन की 'उर्वशी' | आजकल महसूस करती है अमन की 'उर्वशी' | ||
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कैमरे में ही ठहर पाता है पल—दो—पल समय | कैमरे में ही ठहर पाता है पल—दो—पल समय | ||
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वक्त को फुरसत कहाँ वर्ना ठहरने के लिए | वक्त को फुरसत कहाँ वर्ना ठहरने के लिए | ||
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22:15, 21 अप्रैल 2021 के समय का अवतरण
अपनी फुलवारी की सीमा पार करने के लिए
लोग हैं बेताब खुशबू—से बिखरने के लिए
जो हुआ निर्भय , उसे फिर डर भला किस बात का
वरना साया ही बहुत होता है डरने के लिए
आप 'हरसिंगार' की शाखें हिलाना छोड़िए,
आपकी बातें बहुत हैं फूल झरने के लिए
आजकल महसूस करती है अमन की 'उर्वशी'
एक भी दर्पन नहीं बनने संवरने के लिए
कैमरे में ही ठहर पाता है पल—दो—पल समय
वक्त को फुरसत कहाँ वर्ना ठहरने के लिए