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+ | आसमान गिरने के भय से | ||
+ | पड़ी चीखती रही टिटहरी, | ||
− | + | रोक न पाई करुण भयावह | |
− | + | स्वर-लिपि को निस्संग मसहरी; | |
− | + | नींद बदलती रही करवटें | |
− | + | आँख फड़कती रही रात-भर। | |
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− | + | आँखों देखी से क्या कम सच | |
− | + | करुण व्यथा जाग्रत कानों की! | |
− | + | यूँ तो बहुत आदमी देखे, | |
− | + | कमी खली पर इंसानों की! | |
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− | + | महसूसी कासों से दूरी, | |
− | + | सोए थे जो पास हाथ-भर। | |
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− | + | दिन को तरह न दे पाता मैं | |
− | + | स्याह रात कटने से पहले- | |
+ | अंदेशे भी ठोस हकीकत | ||
+ | अघटित से घटने के पहले। | ||
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+ | बिजली स्याह घटाओं वाली | ||
+ | आज कड़कती रही रात-भर, | ||
+ | स्वप्न टूटते रहे सिरे से | ||
+ | नींद उचटती रही रात-भर। | ||
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20:30, 13 मई 2018 के समय का अवतरण
स्वप्न टूटते रहे सिरे से
नींद उचटती रही रात-भर।
आसमान गिरने के भय से
पड़ी चीखती रही टिटहरी,
रोक न पाई करुण भयावह
स्वर-लिपि को निस्संग मसहरी;
नींद बदलती रही करवटें
आँख फड़कती रही रात-भर।
आँखों देखी से क्या कम सच
करुण व्यथा जाग्रत कानों की!
यूँ तो बहुत आदमी देखे,
कमी खली पर इंसानों की!
महसूसी कासों से दूरी,
सोए थे जो पास हाथ-भर।
दिन को तरह न दे पाता मैं
स्याह रात कटने से पहले-
अंदेशे भी ठोस हकीकत
अघटित से घटने के पहले।
बिजली स्याह घटाओं वाली
आज कड़कती रही रात-भर,
स्वप्न टूटते रहे सिरे से
नींद उचटती रही रात-भर।