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"क्षोभ 1 / प्रेमघन" के अवतरणों में अंतर
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छुआ रोग सों पीड़ित नर, दादुर लौंहा हाकार मचाई; | छुआ रोग सों पीड़ित नर, दादुर लौंहा हाकार मचाई; | ||
फेरि प्रेमघन गोबरधनधर! दौरि दया करि करहु सहाई॥141॥ | फेरि प्रेमघन गोबरधनधर! दौरि दया करि करहु सहाई॥141॥ | ||
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08:04, 23 मई 2018 के समय का अवतरण
है कैसी कजरी यह भाई? भारत अम्बर ऊपर छाई॥
मूरखता, आलस, हठ के घन मिलि-मिलि कुमति घटा घिरिआई.
बिलखत प्रजा बिलोकत छन-छन चिन्ता अन्धकार अधिकाई॥
बरसत बारि निरुद्यमता की, दारिद दामिनि दुति दरसाई.
दुख सरिता अति बेग सहित बढ़ि, धीरज बिपुल करारगिराई.
परवसता तृन छाया लियो छिति, सुख मारग नहिं परत लखाई.
जरि जवास जातीय प्रेम को, बैर फूट फल भल फैलाई॥
छुआ रोग सों पीड़ित नर, दादुर लौंहा हाकार मचाई;
फेरि प्रेमघन गोबरधनधर! दौरि दया करि करहु सहाई॥141॥