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"जैसी रोटी हम खाते हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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क्या ख़्वाब सुहाने आते हैं
  
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तब धनिया भी अप्सरा लगे
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जब बाहों में खो जाते हैं
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जो पैसा स्वाभिमान ले ले
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हम उसमें आग लगाते हैं
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मत ऐसे ख़्वाब दिखाओ ,हम
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पानी -पानी हो जाते हैं
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तुम  छंद - बहर साधेा अपनी
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हम अपनी व्यथा सुनाते  हैं
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दुख पीछा करता रहता है
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हम आगे बढ़ते जाते हैं
 
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12:55, 16 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण

जैसी रोटी हम खाते हैं
वैसी ही ग़ज़लें गाते हैं

कथरी गुदरी के बिस्तर में
क्या ख़्वाब सुहाने आते हैं

तब धनिया भी अप्सरा लगे
जब बाहों में खो जाते हैं

जो पैसा स्वाभिमान ले ले
हम उसमें आग लगाते हैं

मत ऐसे ख़्वाब दिखाओ ,हम
पानी -पानी हो जाते हैं

तुम छंद - बहर साधेा अपनी
हम अपनी व्यथा सुनाते हैं

दुख पीछा करता रहता है
हम आगे बढ़ते जाते हैं