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"ज़िंदगी को समझने में देरी हुई / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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हाथ पर हाथ धरकर मैं बैठा रहा
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उनसे वो बात कहने में देरी हुई
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कारवाँ जा चुका होगा जाने कहाँ
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मुझको कपड़े बदलने में देरी हुई
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बेख़बर वो रहा पेड़ कटता रहा
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ज़िंदगी सबको देती है मौक़ा मगर
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सो रहा था मैं जगने में देरी हुई
 
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14:47, 16 नवम्बर 2020 के समय का अवतरण

ज़िंदगी को समझने में देरी हुई
चोट खाकर संभलने में देरी हुई

हाथ पर हाथ धरकर मैं बैठा रहा
उनके दिल में उतरने में देरी हुई

ढल चुकी रात होने को आयी सहर
उनसे वो बात कहने में देरी हुई

कारवाँ जा चुका होगा जाने कहाँ
मुझको कपड़े बदलने में देरी हुई

बेख़बर वो रहा पेड़ कटता रहा
उस परिंदे को उड़ने में देरी हुई

ज़िंदगी सबको देती है मौक़ा मगर
सो रहा था मैं जगने में देरी हुई