भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"'साँझ हो गई' / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 7 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
|शैली= काव्य | |शैली= काव्य | ||
|पृष्ठ= पृष्ठ:120 | |पृष्ठ= पृष्ठ:120 | ||
− | |ISBN= | + | |ISBN=978-93-94221-33-8 |
|विविध= मूल्य: 300 रुपये | |विविध= मूल्य: 300 रुपये | ||
}} | }} | ||
+ | *[[अक्षय प्रेम-जल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] | ||
+ | *[[आया हूँ मैं द्वार तुम्हारे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] | ||
+ | *[[चलते-चलते हार गया / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] | ||
+ | *[[जड़ दूँ एक चुम्बन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] | ||
+ | *[[तेरी वो रुलाई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] | ||
+ | *[[तेरे अधरों के सुर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] | ||
+ | *[[मेपल से भी कभी पूछना / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] | ||
+ | *[[मेरे आगे हार गई थी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] | ||
+ | *[[साँझ हो गई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] | ||
+ | *[[गठरी अपनी छूट गई / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] | ||
+ | *[[मत रहो चुप / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु']] |
07:43, 23 अगस्त 2023 के समय का अवतरण
साँझ हो गई
क्या आपके पास इस पुस्तक के कवर की तस्वीर है?
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
कृपया kavitakosh AT gmail DOT com पर भेजें
रचनाकार | रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |
---|---|
प्रकाशक | अयन प्रकाशन, जे-19/39, राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059 |
वर्ष | 2022 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | कविताएँ |
विधा | काव्य |
पृष्ठ | पृष्ठ:120 |
ISBN | 978-93-94221-33-8 |
विविध | मूल्य: 300 रुपये |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- अक्षय प्रेम-जल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
- आया हूँ मैं द्वार तुम्हारे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
- चलते-चलते हार गया / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
- जड़ दूँ एक चुम्बन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
- तेरी वो रुलाई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
- तेरे अधरों के सुर / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
- मेपल से भी कभी पूछना / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
- मेरे आगे हार गई थी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
- साँझ हो गई / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
- गठरी अपनी छूट गई / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
- मत रहो चुप / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'