Last modified on 29 मार्च 2011, at 21:28

"धड़कनों में कहीं / शलभ श्रीराम सिंह" के अवतरणों में अंतर

(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह= }} <Poem> बहुत ही नन्हें-नर...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 13: पंक्ति 13:
  
 
खिड़कियों से फ़र्श पर कफ़ गिरी
 
खिड़कियों से फ़र्श पर कफ़ गिरी
रैक-टेबिल खाट पर बिखरी
+
रैक-टेबिल-खाट पर बिखरी
सीढ़ियों-सड़कों-दुराहों पर
+
सीढ़ियों-सड़कों-दोराहों पर
जिसे ओढ़े बिलबिलाता नगर चलता है!
+
जिसे ओढ़े  
 +
बिलबिलाता नगर चलता है!
  
 
आख़िरी क़तरा लहू का : शाम!
 
आख़िरी क़तरा लहू का : शाम!
पंक्ति 23: पंक्ति 24:
 
धड़कनों में कहीं पर फ़ौलाद गलता है!
 
धड़कनों में कहीं पर फ़ौलाद गलता है!
 
:::दिन निकलता है!
 
:::दिन निकलता है!
 
+
(1965)
 
</poem>
 
</poem>

21:28, 29 मार्च 2011 के समय का अवतरण


बहुत ही नन्हें-नरम दो हाथ
छू रहे हैं पीठ-गर्दन-माथ
खाँसियों में फेफड़े का दर्द ढलता है!
दिन निकलता है!

खिड़कियों से फ़र्श पर कफ़ गिरी
रैक-टेबिल-खाट पर बिखरी
सीढ़ियों-सड़कों-दोराहों पर
जिसे ओढ़े
बिलबिलाता नगर चलता है!

आख़िरी क़तरा लहू का : शाम!
एक बदसूरत अंधेरा : व्यस्तता का
व्यवस्थित परिणाम ।
टूटने को नसें खिंचती हैं
धड़कनों में कहीं पर फ़ौलाद गलता है!
दिन निकलता है!
(1965)