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<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>'''&nbsp;सप्ताह की कविता'''</div>
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&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले <br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[राजस्थानी लोकगीत]]
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अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले
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चला चला रे डिलैवर गाड़ी हौले हौले ।।
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बीजळी को पंखो चाले, गूंज रयो जण भोरो
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
बैठी रेल में गाबा लाग्यो वो जाटां को छोरो ।।
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
चला चला रे ।।
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डूंगर भागे, नंदी भागे और भागे खेत
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<div style="text-align: center;">
ढांडा की तो टोली भागे, उड़े रेत ही रेत ।।
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
चला चला रे ।।
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</div>
  
बड़ी जोर को चाले अंजन, देवे ज़ोर की सीटी
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
डब्बा डब्बा घूम रयो टोप वारो टी टी ।।
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
चला चला रे ।।
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अपरिचित पास आओ
  
जयपुर से जद गाड़ी चाली गाड़ी चाली मैं बैठी थी सूधी
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
असी जोर को धक्का लाग्यो जद मैं पड़ गयी उँधी ।।
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
चला चला रे ।।
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
शब्दार्थ :
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सबमें अपनेपन की माया
 
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अपने पन में जीवन आया
डलेवर= ड्राईवर
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गाबा= गाने लगना
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डूंगर= पहाड़
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नंदी= नदी
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ढांडा= जानवर
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जद= जब (जदी, जर और जण भी कहा जाता है)
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असी= ऐसा, इतना
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</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया