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"जब भी तन्हाई से घबरा के / सुदर्शन फ़ाकिर" के अवतरणों में अंतर

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हम तो आये थे रहें शाख़ में फूलों की तरह <br>
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तुम अगर ख़ार समझते हो तो हट जाते हैं  
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ख़ार = thorn

10:29, 7 मई 2014 के समय का अवतरण

 
जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं

उन पे तूफ़ाँ को भी अफ़सोस हुआ करता है
वो सफ़ीने जो किनारों पे उलट जाते हैं

हम तो आये थे रहें शाख़ में फूलों की तरह
तुम अगर ख़ार समझते हो तो हट जाते हैं

ख़ार = thorn