भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"खुली आँखों में / परवीन शाकिर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
+
{{KKCatGhazal}}
खुली आँखों में सपना जागता है<br>
+
<poem>
वो सोया है के कुछ कुछ जागता है<br><br>
+
खुली आँखों में सपना जागता है
 +
वो सोया है के कुछ कुछ जागता है
  
तेरी चाहत के भीगे जंगलों में<br>
+
तेरी चाहत के भीगे जंगलों में
मेरा तन मोर बन के नाचता है<br><br>
+
मेरा तन मोर बन के नाचता है
  
मुझे हर कैफ़ियत में क्यों न समझे<br>
+
मुझे हर कैफ़ियत में क्यों न समझे
वो मेरे सब हवाले जानता है<br><br>
+
वो मेरे सब हवाले जानता है
  
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल<br>
+
किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी टालता है<br><br>
+
बहाने से मुझे भी टालता है
  
सड़क को छोड़ कर चलना पड़ेगा<br>
+
सड़क को छोड़ कर चलना पड़ेगा
के मेरे घर का कच्चा रास्ता है<br><br>
+
के मेरे घर का कच्चा रास्ता है
 +
</poem>

10:56, 25 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

खुली आँखों में सपना जागता है
वो सोया है के कुछ कुछ जागता है

तेरी चाहत के भीगे जंगलों में
मेरा तन मोर बन के नाचता है

मुझे हर कैफ़ियत में क्यों न समझे
वो मेरे सब हवाले जानता है

किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी टालता है

सड़क को छोड़ कर चलना पड़ेगा
के मेरे घर का कच्चा रास्ता है