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"कविता / कुंवर नारायण" के अवतरणों में अंतर

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कविता वक्तव्य नहीं गवाह है  
 
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कभी हमारे सामने  
 
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कभी हमसे पहले  
 
कभी हमसे पहले  
 
 
कभी हमारे बाद  
 
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कोई चाहे भी तो रोक नहीं सकता  
 
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भाषा में उसका बयान  
 
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जिसका पूरा मतलब है सचाई
 
जिसका पूरा मतलब है सचाई
 
 
जिसका पूरी कोशिश है बेहतर इन्सान
 
जिसका पूरी कोशिश है बेहतर इन्सान
 
 
  
 
उसे कोई हड़बड़ी नहीं
 
उसे कोई हड़बड़ी नहीं
 
 
कि वह इश्तहारों की तरह चिपके  
 
कि वह इश्तहारों की तरह चिपके  
 
 
जुलूसों की तरह निकले  
 
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नारों की तरह लगे  
 
नारों की तरह लगे  
 
 
और चुनावों की तरह जीते  
 
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वह आदमी की भाषा में  
 
वह आदमी की भाषा में  
 
 
कहीं किसी तरह ज़िन्दा रहे, बस
 
कहीं किसी तरह ज़िन्दा रहे, बस
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02:02, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

कविता वक्तव्य नहीं गवाह है
कभी हमारे सामने
कभी हमसे पहले
कभी हमारे बाद

कोई चाहे भी तो रोक नहीं सकता
भाषा में उसका बयान
जिसका पूरा मतलब है सचाई
जिसका पूरी कोशिश है बेहतर इन्सान

उसे कोई हड़बड़ी नहीं
कि वह इश्तहारों की तरह चिपके
जुलूसों की तरह निकले
नारों की तरह लगे
और चुनावों की तरह जीते

वह आदमी की भाषा में
कहीं किसी तरह ज़िन्दा रहे, बस