|
|
(9 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 174 अवतरण नहीं दर्शाए गए) |
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
− | <div class='box' style="background-color:#DD5511;width:100%; align:center"><div class='boxtop'><div></div></div> | + | <div style="background:#eee; padding:10px"> |
− | <div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'></div> | + | <div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px"> |
− | <div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#FFF3DF;border:1px solid #DD5511;'>
| + | |
− | <!----BOX CONTENT STARTS------>
| + | |
− | <table width=100% style="background:transparent">
| + | |
− | <tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
| + | |
− | <td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
| + | |
− | <td> '''शीर्षक: '''सूत्रधार<br>
| + | |
− | '''रचनाकार:''' [[विमल कुमार]]</td>
| + | |
− | </tr>
| + | |
− | </table>
| + | |
| | | |
− | <pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none"> | + | <div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;"> |
− | मैं इन दिनों खेले जा रहे
| + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div> |
− | एक अजीबोग़रीब नाटक का सूत्रधार हूँ
| + | |
− | अभी नेपथ्य से ही बोल रहा हूँ
| + | |
− | कि लोकतन्त्र में किसी बात पर बहस हो सकती है
| + | |
− | इस बात पर भी बहस हो सकती है
| + | |
− | कि हत्या करना कितना ज़रूरी है एक आदमी की
| + | |
− | मानवता की रक्षा के लिए
| + | |
− | कि बलात्कार से महिलाएँ कितनी जागरूक होती हैं
| + | |
− | अपने अधिकारों के प्रति
| + | |
| | | |
− | इस नाटक के हर सीन के बाद
| + | <div style="text-align: center;"> |
− | एक संवाददाता सम्मेलन होगा, जो क्षेपक है,
| + | रचनाकार: [[त्रिलोचन]] |
− | उसमें बताया जाएगा
| + | </div> |
− | कि इन बहसों के नतीजे क्या निकले हैं
| + | |
− | कि आख़िर में कौन सा संकल्प पारित हुआ है
| + | |
− | अगले दिन फिर अख़बारों में उनकी ख़बर होगी
| + | |
− | मुखपृष्ठ पर
| + | |
− | टी०वी० पर फिर चेहरा नज़र आएगा उनका
| + | |
− | चारों तरफ़ कैमरों से घिरी होगी उनकी काया
| + | |
− | फिर एक विधेयक पेश होगा संशोधन के साथ
| + | |
− | एक प्राहिकरण बनेगा
| + | |
− | और कुछ नहीं हुआ तो कम से कम अध्यक्ष का चयन ज़रूर होगा
| + | |
| | | |
− | मैं इस लम्बे और उबाऊ नाटक का सूत्रधार हूँ
| + | <div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;"> |
− | लचर कथानक और ढीले सम्वादों से बोर हो चुका हूँ
| + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार |
− | लेकिन क्या करूँ अब मंच पर आकर बोल रहा हूँ
| + | अपरिचित पास आओ |
− | कि लोकतन्त्र में कोई भी जनप्रतिनिधी कह सकता है
| + | |
− | कि भूखी जनता को पहले अपने राष्ट्रप्रेम का परिचय देना चाहिए
| + | |
− | कि नंगी जनता को समझना चाहिए
| + | |
− | कि बम ज़्यादा ज़रूरी है अंग ढँकने से
| + | |
− | कि बच्चों को भी जान लेना चाहिए
| + | |
− | युध से ही उनका भविष्य संवर सकता है
| + | |
− | कि औरतों को भी मान लेना चाहिए
| + | |
− | कि सौन्दर्य में ही छिपी हुई है उनकी आज़ादी
| + | |
− | मध्यांतर में इस बात पर विशेष चर्चा होगी
| + | |
− | कि आज़ाई के पचास साल बाद
| + | |
− | लुटेरे ही एश का निर्माण कर सकेंगे
| + | |
− | क्योंकि उनमें अद्भुत्त नेतृत्त्व-क्षमता है
| + | |
− | कि मक्कार ही ईमानदारी की भाशःआ सिखाएंगे
| + | |
− | क्योंकि विकास के लिए धूर्तता बहुत ज़रूरी है
| + | |
− | कि अहंकारी ही ज्ञान का प्रचार करेंगे
| + | |
− | क्योंकि विनम्रता में तो छिपी होती है मूर्खता
| + | |
| | | |
− | मैं इस नाटक का सूत्रधार हूँ
| + | आँखों में सशंक जिज्ञासा |
− | पर निर्देर्शक का दबाव भी मेरे ऊपर बहुत है
| + | मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा |
− | लेकिन मुझे तो सच कहना है लेखक के अनुसार
| + | जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं |
− | इसलिए सच कह रहा हूँ
| + | स्तम्भ शेष भय की परिभाषा |
− | कि नाटक के ख़त्म होने पर
| + | हिलो-मिलो फिर एक डाल के |
− | हर कलाकार का उससे परिचय कराया जाऐगा
| + | खिलो फूल-से, मत अलगाओ |
− | यह बताया जाऐगा
| + | |
− | कि जो व्यक्ति कभी मंच पर आया ही नहीं
| + | |
− | वही मुख्य नायक था इस नाटक का
| + | |
− | कि जो शोर सुनाई दे रहा था आपको अभी तक
| + | |
− | वह दरअसल नाटक का संगीत था
| + | |
− | कि सभागार में जो अंधेरा छाया था
| + | |
− | वह लाइटिंग के ही कमाल का नतीजा था
| + | |
| | | |
− | दर्शको! इस नाटक के अभी और शो होंगे
| + | सबमें अपनेपन की माया |
− | यह नाटक अगली सदी में भी
| + | अपने पन में जीवन आया |
− | इसी तरह हर शहर में खेला जाऐगा
| + | </div> |
− | | + | </div></div> |
− | नाट्य-समीक्षको!
| + | |
− | अगर भारतीय रंगमंच को बचाना है
| + | |
− | तो कुछ न कुछ आप लोगों को भी करना होगा
| + | |
− | इस समय नाट्य लेखन,
| + | |
− | अभिनय
| + | |
− | प्रस्तुति
| + | |
− | सब ख़तरे में है
| + | |
− | </pre> | + | |
− | <!----BOX CONTENT ENDS------>
| + | |
− | </div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
| + | |