भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दो बूँदें / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो (दो बूँदें moved to दो बूँदें / जयशंकर प्रसाद) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=जयशंकर प्रसाद | |
− | + | }} | |
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | + | <poem> | |
शरद का सुंदर नीलाकाश | शरद का सुंदर नीलाकाश | ||
− | |||
निशा निखरी, था निर्मल हास | निशा निखरी, था निर्मल हास | ||
− | |||
बह रही छाया पथ में स्वच्छ | बह रही छाया पथ में स्वच्छ | ||
− | |||
सुधा सरिता लेती उच्छ्वास | सुधा सरिता लेती उच्छ्वास | ||
− | |||
पुलक कर लगी देखने धरा | पुलक कर लगी देखने धरा | ||
− | + | प्रकृति भी सकी न आँखें मूँद | |
− | प्रकृति भी सकी न आँखें | + | |
− | + | ||
सु शीतलकारी शशि आया | सु शीतलकारी शशि आया | ||
− | + | सुधा की मनो बड़ी सी बूँद!</poem> | |
− | सुधा की मनो बड़ी सी बूँद ! | + |
15:38, 19 दिसम्बर 2018 के समय का अवतरण
शरद का सुंदर नीलाकाश
निशा निखरी, था निर्मल हास
बह रही छाया पथ में स्वच्छ
सुधा सरिता लेती उच्छ्वास
पुलक कर लगी देखने धरा
प्रकृति भी सकी न आँखें मूँद
सु शीतलकारी शशि आया
सुधा की मनो बड़ी सी बूँद!