भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पपीहा बोलि जारे / पढ़ीस" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=पढ़ीस | |रचनाकार=पढ़ीस | ||
+ | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | {{KKCatAwadhiRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | पपीहा बोलि जा रे! | + | पपीहा बोलि जा रे ! |
− | पपीहा डोलि जा रे! | + | हाली डोलि जा रे ! |
+ | बादर बइरी<ref>वैरी, दुश्मन, शत्रु</ref> रूप बनावयिं | ||
+ | मारयिं बूँदन बान। | ||
+ | तिहि पर तुइ पिउ-पिउ ग्वहरावइ | ||
+ | हाँकन हूकु न, मानु। | ||
+ | पपीहा बोलि जा रे ! | ||
+ | हाली डोलि जा रे ! | ||
− | + | तपि-तपि रहिउऊ तंपता साथी | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | तपि-तपि | + | |
लूकन लूक न लागि। | लूकन लूक न लागि। | ||
जागि रहे उयि कहूँ कँधैया | जागि रहे उयि कहूँ कँधैया | ||
दागि बिरह की आगि। | दागि बिरह की आगि। | ||
− | + | पपीहा बोलि जा रे ! | |
− | पपीहा बोलि जा रे! | + | हाली डोलि जा रे ! |
− | + | ||
− | + | ||
छिनु-छिनु पर छवि हायि न भूलयि | छिनु-छिनु पर छवि हायि न भूलयि | ||
हूलयि हिया हमार। | हूलयि हिया हमार। | ||
साजन आवयिं तब तुइ आये | साजन आवयिं तब तुइ आये | ||
आजु बोलु उयि पार। | आजु बोलु उयि पार। | ||
− | + | पपीहा बोलि जा रे ! | |
− | पपीहा बोलि जा रे! | + | हाली डोलि जा रे ! |
− | + | </poem> | |
− | + | {{KKMeaning}} | |
− | + | ||
− | + | ||
− | </ | + |
16:30, 7 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण
पपीहा बोलि जा रे !
हाली डोलि जा रे !
बादर बइरी<ref>वैरी, दुश्मन, शत्रु</ref> रूप बनावयिं
मारयिं बूँदन बान।
तिहि पर तुइ पिउ-पिउ ग्वहरावइ
हाँकन हूकु न, मानु।
पपीहा बोलि जा रे !
हाली डोलि जा रे !
तपि-तपि रहिउऊ तंपता साथी
लूकन लूक न लागि।
जागि रहे उयि कहूँ कँधैया
दागि बिरह की आगि।
पपीहा बोलि जा रे !
हाली डोलि जा रे !
छिनु-छिनु पर छवि हायि न भूलयि
हूलयि हिया हमार।
साजन आवयिं तब तुइ आये
आजु बोलु उयि पार।
पपीहा बोलि जा रे !
हाली डोलि जा रे !
शब्दार्थ
<references/>