भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दुइ टूक बात / पढ़ीस" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पढ़ीस }} <poem> चहयि होटल मा जलपानु कर‍उ की- :::अचारु व...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=पढ़ीस
 
|रचनाकार=पढ़ीस
 +
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
{{KKCatAwadhiRachna}}
 
<poem>
 
<poem>
चहयि होटल मा जलपानु कर‍उ की-
+
चहयि होटल मा जलपानु करउ की-
:::अचारु विचारु की पोथी पढ़‍उ।
+
अॅचारू विचारू की पोथी पढ़उ
व्यभिचारी रह‍उ सदाचारी बन‍उ चहयि-
+
व्यभिचारी रहउ सदाचारी बनउ चहयि-
:::साँच्यन ग्वाड़न मूड़ धर‍उ।
+
साँच्यन ग्वाड़न मूड़ चढ़उ।
चहे राजा भलयि, रय्यति हे चहयि-
+
चाहे राजा भलयि, रय्यति हे चहयि-
:::जायि जहाजन म्याड़ चढ़‍उ।
+
जायि जहाजन म्याड़ चढ़उ।
मुल‍उ द्यास जवार की बातन मा-
+
मुलउ द्यास<ref>द्यास, देश</ref> जवार<ref>आस-पास का क्षेत्र विशेष</ref> की बातन मा-
:::घर ते तुम दादा न पाछे कढ़‍उ।
+
घर ते तुम दादा न पाछे कढ़उ।
तुम हॉथन ग्वाड़‍न ते मजबूत यी-
+
तुम हॉथन ग्वाड़न ते मजबूत यी-
:::चारि पनेथी कि बासी कर‍उ।
+
चारि पनेथी कि बासी करउ।
को सगा हयि सही स‍उत्यालि हयि-
+
को सगा हयि सही सउत्यालि हयि-
:::को तनि भाई भले पहिचान‍उ त‍उ।
+
तो तनि भाई भले पहिंचानउ तउ।
कीहि की अमर‍उती रही जग मा चहयि-
+
किहि की अमरउती रही जग मा चहयि-
:::आजु जर‍उ चहयि काल्हि मर‍उ।
+
आजु जरउ चहयि काल्हि मरउ।
कटि जाउ न द्यास की बातन मा त‍उ-
+
कटि जाउ न द्यास की बातन मा तउ-
:::अकारथ का युहु जामा धर‍उ।
+
अकारथ का युहु जामा धरउ।
 
+
</poem>
'''शब्दार्थ :
+
{{KKMeaning}}
द्यास = देश।
+
जवार = आस-पास का इलाका।
+
</Poem>
+

16:33, 7 नवम्बर 2014 के समय का अवतरण

चहयि होटल मा जलपानु करउ की-
अॅचारू विचारू की पोथी पढ़उ
व्यभिचारी रहउ सदाचारी बनउ चहयि-
साँच्यन ग्वाड़न मूड़ चढ़उ।
चाहे राजा भलयि, रय्यति हे चहयि-
जायि जहाजन म्याड़ चढ़उ।
मुलउ द्यास<ref>द्यास, देश</ref> जवार<ref>आस-पास का क्षेत्र विशेष</ref> की बातन मा-
घर ते तुम दादा न पाछे कढ़उ।
तुम हॉथन ग्वाड़न ते मजबूत यी-
चारि पनेथी कि बासी करउ।
को सगा हयि सही सउत्यालि हयि-
तो तनि भाई भले पहिंचानउ तउ।
किहि की अमरउती रही जग मा चहयि-
आजु जरउ चहयि काल्हि मरउ।
कटि जाउ न द्यास की बातन मा तउ-
अकारथ का युहु जामा धरउ।

शब्दार्थ
<references/>