भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=निदा फ़ाज़ली | |
− | + | |अनुवादक= | |
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatGhazal}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार | ||
+ | दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार | ||
− | + | छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार | |
+ | आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार | ||
− | + | लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव | |
− | + | हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव | |
− | + | ||
− | + | ||
+ | सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत | ||
+ | मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत | ||
− | + | पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम | |
− | + | जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम | |
− | + | ||
− | + | ||
− | पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम | + | |
− | जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम | + | |
+ | सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर | ||
+ | जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर | ||
− | + | अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप | |
− | + | जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप | |
− | अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप | + | |
− | जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप | + | |
+ | सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास | ||
+ | पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास | ||
− | + | चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान | |
− | + | ||
− | चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान | + | |
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान | मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान | ||
+ | </poem> |
19:57, 13 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण
मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार
लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव
सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत
पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम
सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर
अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप
सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास
पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास
चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान