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"मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर

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लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव
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हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव
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पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम
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जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर <br>
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जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप
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जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप  
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पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास
  
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चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान
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मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान
 
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19:57, 13 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिठ्ठी बिन तार

छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आँखों भर आकाश है बाहों भर संसार

लेके तन के नाप को घूमे बस्ती गाँव
हर चादर के घेर से बाहर निकले पाँव

सबकी पूजा एक सी अलग-अलग हर रीत
मस्जिद जाये मौलवी कोयल गाये गीत

पूजा घर में मूर्ती मीर के संग श्याम
जिसकी जितनी चाकरी उतने उसके दाम

सातों दिन भगवान के क्या मंगल क्या पीर
जिस दिन सोए देर तक भूखा रहे फ़कीर

अच्छी संगत बैठकर संगी बदले रूप
जैसे मिलकर आम से मीठी हो गई धूप

सपना झरना नींद का जागी आँखें प्यास
पाना खोना खोजना साँसों का इतिहास

चाहे गीता बाचिये या पढ़िये क़ुरान
मेरा तेरा प्यार ही हर पुस्तक का ज्ञान