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"सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं / सुदर्शन फ़ाकिर" के अवतरणों में अंतर

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ज़िन्दगी को भी सिला कहते हैं कहनेवाले
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जीनेवाले तो गुनाहों की सज़ा कहते हैं
  
सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं <br>
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फ़ासले उम्र के कुछ और बढा़ देती है  
जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा कहते हैं <br><br>
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जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं  
  
ज़िन्दगी को भी सिला कहते हैं कहनेवाले <br>
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चंद मासूम से पत्तों का लहू है "फ़ाकिर"  
जीनेवाले तो गुनाहों की सज़ा कहते हैं <br><br>
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जिसको महबूब के हाथों की हिना कहते हैं  
 
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फ़ासले उम्र के कुछ और बढा़ देती है <br>
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जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं <br><br>
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चंद मासूम से पत्तों का लहू है "फ़ाकिर" <br>
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जिसको महबूब के हाथों की हिना कहते हैं <br><br>
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11:42, 7 मई 2014 के समय का अवतरण

सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा कहते हैं

ज़िन्दगी को भी सिला कहते हैं कहनेवाले
जीनेवाले तो गुनाहों की सज़ा कहते हैं

फ़ासले उम्र के कुछ और बढा़ देती है
जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं

चंद मासूम से पत्तों का लहू है "फ़ाकिर"
जिसको महबूब के हाथों की हिना कहते हैं