भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(8 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 149 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<div class='box' style="background-color:#DD5511;width:100%; align:center"><div class='boxtop'><div></div></div>
+
<div style="background:#eee; padding:10px">
<div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'></div>
+
<div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px">
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#FFF3DF;border:1px solid #DD5511;'>
+
<!----BOX CONTENT STARTS------>
+
<table width=100% style="background:transparent">
+
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
+
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
+
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''पहले ज़मीन बाँटी थी फिर घर भी बँट गया<br>
+
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[शीन काफ़ निज़ाम]]</td>
+
</tr>
+
</table>
+
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
+
पहले ज़मीन बाँटी थी फिर घर भी बँट गया
+
इन्सान अपने आप में कितना सिमट गया
+
  
अब क्या हुआ कि ख़ुद को मैं पहचानता नहीं
+
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
मुद्दत हुई कि रिश्ते का कुहरा भी छँट गया
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
हम मुन्तज़िर थे शाम से सूरज के, दोस्तो!
+
<div style="text-align: center;">
लेकिन वो आया सर पे तो क़द अपना घट गया
+
रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 +
</div>
  
गाँवों को छोड़ कर तो चले आए शहर में
+
<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
जाएँ किधर कि शहर से भी जी उचट गया
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
 +
अपरिचित पास आओ
  
किससे पनाह मांगे कहाँ जाएँ क्या करें
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
फिर आफ़ताब रात का घूँघट उलट गया
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
 +
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
 +
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
 +
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
सैलाब-ए-नूर में जो रहा मुझ से दूर-दूर
+
सबमें अपनेपन की माया
वो शख़्स फिर अन्धेरे में मुझसे लिपट गया
+
अपने पन में जीवन आया
</pre>
+
</div>
<!----BOX CONTENT ENDS------>
+
</div></div>
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
+

19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया