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− | <div class='box_lk' style="background-color:#DD5511;width:100%; align:center"><div class='boxtop_lk'><div></div></div> | + | <div style="background:#eee; padding:10px"> |
− | <div class='boxheader_lk' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'></div> | + | <div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px"> |
− | <div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent_lk' style='background-color:#FFF3DF;border:1px solid #DD5511;'>
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− | <table width=100% style="background:transparent">
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− | <tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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− | <td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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− | <td> '''शीर्षक: '''पगली - गोद भर गई है जिसकी पर मांग अभी तक खाली है<br>
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− | '''रचनाकार:''' [[जगदीश तपिश]]</td>
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− | </tr>
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− | </table>
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− | <pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
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− | ऊपर वाले तेरी दुनिया कितनी अजब निराली है
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− | कोई समेट नहीं पाता है किसी का दामन खाली है
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− | एक कहानी तुम्हें सुनाऊँ एक किस्मत की हेठी का
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− | न ये किस्सा धन दौलत का न ये किस्सा रोटी का
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− | साधारण से घर में जन्मी लाड़ प्यार में पली बढ़ी थी
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− | अभी-अभी दहलीज पे आ के यौवन की वो खड़ी हुई थी
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− | वो कालेज में पढ़ने जाती थी कुछ-कुछ सकुचाई सी
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− | कुछ इठलाती कुछ बल खाती और कुछ-कुछ शरमाई सी
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− | प्रेम जाल में फँस के एक दिन वो लड़की पामाल हो गई
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− | लूट लिया सब कुछ प्रेमी ने आखिर में कंगाल हो गई
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− | पहले प्रेमी ने ठुकराया फिर घर वाले भी रूठ गए
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− | वो लड़की पागल-सी हो गई सारे रिश्ते टूट गए
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− | अभी-अभी वो पागल लड़की नए शहर में आई है
| + | <div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;"> |
− | उसका साथी कोई नहीं है बस केवल परछाई है
| + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div> |
− | उलझ- उलझे बाल हैं उसके सूरत अजब निराली-सी
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− | पर दिखने में लगती है बिलकुल भोली-भाली-सी
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− | झाडू लिए हाथ में अपने सड़कें रोज बुहारा करती
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− | हर आने जाने वाले को हँसते हुए निहारा करती
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− | कभी ज़ोर से रोने लगती कभी गीत वो गाती है
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− | कभी ज़ोर से हँसने लगती और कभी चिल्लाती है
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− | कपड़े फटे हुए हैं उसके जिनसे यौवन झाँक रहा है
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− | केवल एक साड़ी का टुकड़ा खुले बदन को ढाँक रहा है
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− | भूख की मारी वो बेचारी एक होटल पर खड़ी हुई है
| + | <div style="text-align: center;"> |
− | आखिर कोई तो कुछ देगा इसी बात पे अड़ी हुई है
| + | रचनाकार: [[त्रिलोचन]] |
− | गली-मोहल्ले में वो भटकी चौखट-चौखट पर चिल्लाई
| + | </div> |
− | लेकिन उसके मन की पीड़ा कहीं किसी को रास न आई
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− | उसको रोटी नहीं मिली है कूड़ेदान में खोज रही है
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− | कैसे उसकी भूख मिटेगी मेरी कलम भी सोच रही है
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− | दिल कहता है कल पूछूंगा किस माँ-बाप की बेटी है
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− | जाने कब से सोई नहीं है जाने कब से भूखी है
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− | ज़ुर्म बताओ पहले उसका जिसकी सज़ा वो झेल रही है
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− | गर्मी-सर्दी और बारिश में तूफानों से खेल रही है
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− | शहर के बाहर पेड़ के नीचे उसका रैन बसेरा है
| + | <div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;"> |
− | वही रात कटती है उसकी होता वही सवेरा है
| + | खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार |
− | रात गए उसकी चीखों ने सन्नाटे को तोड़ा है
| + | अपरिचित पास आओ |
− | जाने कब तक कुछ गुंडों ने उसका ज़िस्म निचोड़ा है
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− | पुलिस तलाश रही है उनको जिनने ये कुकर्म किया है
| + | आँखों में सशंक जिज्ञासा |
− | आज चिकित्सालय में उसने एक बच्चे को जन्म दिया है
| + | मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा |
− | कहते हैं तू कण-कण में है तुझको तो सब कुछ दिखता है
| + | जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं |
− | हे ईश्वर क्या तू नारी की ऐसी भी क़िस्मत लिखता है
| + | स्तम्भ शेष भय की परिभाषा |
− | उस पगली की क़िस्मत तूने ये कैसी लिख डाली है
| + | हिलो-मिलो फिर एक डाल के |
− | गोद भर गई है उसकी पर मांग अभी तक खाली है
| + | खिलो फूल-से, मत अलगाओ |
− | </pre> | + | |
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| + | सबमें अपनेपन की माया |
− | </div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
| + | अपने पन में जीवन आया |
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