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"रूप-रस पीवत अघात ना हुते जो तब / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

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रूप-रस पीवत अघात ना हुते जो तब,
 
रूप-रस पीवत अघात ना हुते जो तब,
सोई अब आँस ह्वै उबरि गिरिबौ करैं ।
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::सोई अब आँस ह्वै उबरि गिरिबौ करैं ।
 
कहै रतनाकर जुड़ात हुते देखैं जिन्हें,
 
कहै रतनाकर जुड़ात हुते देखैं जिन्हें,
याद किएँ तिनकौं अँवां सौं घिरिबौ करैं ॥
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::याद किएँ तिनकौं अँवां सौं घिरिबौ करैं ॥
 
दिननि के फेर सौं भयो है हेर-फेर ऐसौ,
 
दिननि के फेर सौं भयो है हेर-फेर ऐसौ,
जाकौं हेरि-फेरि हेरिबौई हिरिबौ करैं ।
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::जाकौं हेरि-फेरि हेरिबौई हिरिबौ करैं ।
 
फिरति हुते हु जिन कुंजन में आठौं जाम,
 
फिरति हुते हु जिन कुंजन में आठौं जाम,
नैननि मैं अब सोई कुंज फिरिबौ करैं ॥7॥
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::नैननि मैं अब सोई कुंज फिरिबौ करैं ॥7॥
 
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09:36, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण

रूप-रस पीवत अघात ना हुते जो तब,
सोई अब आँस ह्वै उबरि गिरिबौ करैं ।
कहै रतनाकर जुड़ात हुते देखैं जिन्हें,
याद किएँ तिनकौं अँवां सौं घिरिबौ करैं ॥
दिननि के फेर सौं भयो है हेर-फेर ऐसौ,
जाकौं हेरि-फेरि हेरिबौई हिरिबौ करैं ।
फिरति हुते हु जिन कुंजन में आठौं जाम,
नैननि मैं अब सोई कुंज फिरिबौ करैं ॥7॥