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"धाईं धाम-धाम तैं अवाई सुनि ऊधव की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’" के अवतरणों में अंतर

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धाईं धाम-धाम तैं अवाई सुनि ऊधव की,
 
धाईं धाम-धाम तैं अवाई सुनि ऊधव की,
बाम-बाम लाख अबिलाषनि सौं म्वै रहीं ।
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::बाम-बाम लाख अबिलाषनि सौं म्वै रहीं ।
 
कहै रतनाकर पै विकल बिलोकि तिन्है,
 
कहै रतनाकर पै विकल बिलोकि तिन्है,
सकल करेजौ थामि आपुनपौ ख्वै रहीं ॥
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::सकल करेजौ थामि आपुनपौ ख्वै रहीं ॥
 
लेखि निज-भाग-लेख रेख तिन आनन की,
 
लेखि निज-भाग-लेख रेख तिन आनन की,
जानन की ताहि आतुरी सौं मन म्वै रहीं ।
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::जानन की ताहि आतुरी सौं मन म्वै रहीं ।
 
आँस रोकि साँस रोकि पूछन-हुलास रोकि,
 
आँस रोकि साँस रोकि पूछन-हुलास रोकि,
मूरति निरासा की-सी आस-भरी ज्वै रहीं ॥25॥
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::मूरति निरासा की-सी आस-भरी ज्वै रहीं ॥25॥
 
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09:21, 2 मार्च 2010 के समय का अवतरण

धाईं धाम-धाम तैं अवाई सुनि ऊधव की,
बाम-बाम लाख अबिलाषनि सौं म्वै रहीं ।
कहै रतनाकर पै विकल बिलोकि तिन्है,
सकल करेजौ थामि आपुनपौ ख्वै रहीं ॥
लेखि निज-भाग-लेख रेख तिन आनन की,
जानन की ताहि आतुरी सौं मन म्वै रहीं ।
आँस रोकि साँस रोकि पूछन-हुलास रोकि,
मूरति निरासा की-सी आस-भरी ज्वै रहीं ॥25॥