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+ | *[[अति घर्षण से हिम से भी उठती चिनगारी / अष्टम सर्ग / गुलाब खंडेलवाल]] | ||
+ | *[[यह नूतन इतिहास आज कवि लिखने जिसे चला है / नवम सर्ग / गुलाब खंडेलवाल]] | ||
+ | *[[हिन्दू-मुस्लिम-मेल, देश की मद्य-मुक्ति, सेवा हरिजन की / दशम सर्ग / गुलाब खंडेलवाल]] | ||
+ | *[[हृदय में भीति सत्ता के जगी थी / एकादश सर्ग / गुलाब खंडेलवाल]] | ||
+ | *[[थककर सोयी थी भारत-भू / द्वादश सर्ग / गुलाब खंडेलवाल]] | ||
+ | *[['प्रभो! इस देश को सत्पथ दिखाओ / त्रयोदश सर्ग / गुलाब खंडेलवाल]] |
03:06, 15 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
आलोकवृत्त
रचनाकार | गुलाब खंडेलवाल |
---|---|
प्रकाशक | |
वर्ष | |
भाषा | हिंदी |
विषय | |
विधा | खंड-काव्य |
पृष्ठ | |
ISBN | |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- भग्न तारों को सजाकर, / प्रथम सर्ग / गुलाब खंडेलवाल
- होती गयी रजनी गहन से गहनतर, / प्रथम सर्ग / गुलाब खंडेलवाल
- और एक दिन निशि के सूनेपन में रूग्ण पिता के / द्वितीय सर्ग / गुलाब खंडेलवाल
- 'मन्त्र पुराने काम न देंगें, मन्त्र नया पढ़ना है / तृतीय सर्ग/ गुलाब खंडेलवाल
- जन्मसिद्ध अधिकार मनुज का न्याय-शान्ति पाने का / चतुर्थ सर्ग / गुलाब खंडेलवाल
- आ चुके थे पर चतुर नायक पुलिस के / पंचम सर्ग / गुलाब खंडेलवाल
- मुँह से उफ् तक किये बिना अधिकारों के हित अड़ना है / षष्ट सर्ग / गुलाब खंडेलवाल
- स्वयं वन्दिनी पिंजरे में जब तड़प रही हो माता / सप्तम सर्ग / गुलाब खंडेलवाल
- अति घर्षण से हिम से भी उठती चिनगारी / अष्टम सर्ग / गुलाब खंडेलवाल
- यह नूतन इतिहास आज कवि लिखने जिसे चला है / नवम सर्ग / गुलाब खंडेलवाल
- हिन्दू-मुस्लिम-मेल, देश की मद्य-मुक्ति, सेवा हरिजन की / दशम सर्ग / गुलाब खंडेलवाल
- हृदय में भीति सत्ता के जगी थी / एकादश सर्ग / गुलाब खंडेलवाल
- थककर सोयी थी भारत-भू / द्वादश सर्ग / गुलाब खंडेलवाल
- 'प्रभो! इस देश को सत्पथ दिखाओ / त्रयोदश सर्ग / गुलाब खंडेलवाल