भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अजनबी अपना ही साया हो गया है / कविता किरण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता किरण |संग्रह= }}{{KKVID|v=rKHfkWC212Y}} {{KKCatKavita}} <poem> अजनबी अप…) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=कविता किरण | |रचनाकार=कविता किरण | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
− | }}{{KKVID|v= | + | }}{{KKVID|v=k8NATKSBvt4}} |
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> |
10:32, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
अजनबी अपना ही साया हो गया है
खून अपना ही पराया हो गया है
मांगता है फूल डाली से हिसाब
मुझपे क्या तेरा बकाया हो गया है
बीज बरगद में हुआ तब्दील तो
सेर भी बढ़कर सवाया हो गया है
बूँद ने सागर को शर्मिंदा किया
फिर धरा का सृजन जाया हो गया है
बात घर की घर में थी अब तक 'किरण'
राज़ अब जग पर नुमायाँ हो गया है