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<span style="font-size:11px">'''इस पन्ने के माध्यम से आप कविता कोश से संबंधित किसी भी बात पर सभी के साथ वार्ता कर सकते हैं।'''<br>'''कृपया इस पन्ने पर से कुछ भी मिटायें नहीं। आप जो भी बात जोड़ना चाहते हैं उसे नीचे दिये गये उचित विषय के सैक्शन में जोड़ दें। अपनी बात यहाँ जोडने के लिये इस पन्ने के ऊपर दिये गये "Edit" लिंक पर क्लिक करें'''</span>
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<span style="font-size:11px">'''इस पन्ने के माध्यम से आप कविता कोश से संबंधित किसी भी बात पर सभी के साथ वार्ता कर सकते हैं। कृपया इस पन्ने पर से कुछ भी मिटायें नहीं। आप जो भी बात जोड़ना चाहते हैं उसे नीचे दिये गये उचित विषय के सैक्शन में जोड़ दें या नया सैक्शन बना लें। अपनी बात यहाँ जोडने के लिये इस पन्ने के ऊपर दिये गये "Edit this page" लिंक पर क्लिक करें'''</span>
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{{KKChaupaalNavigation}}
 
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<table width=40% align=right style="border:1px solid #0099ff"><tr><td align=center><b>चौपाल की पुरानी बातें</b></td></tr><tr><td align=center>[[चौपाल|वर्तमान]]&nbsp;&nbsp;&nbsp;[[चौपाल/001|001]]&nbsp;&nbsp;&nbsp;<font color=gray>002&nbsp;&nbsp;&nbsp;003&nbsp;&nbsp;&nbsp;004&nbsp;&nbsp;&nbsp;005&nbsp;&nbsp;&nbsp;006&nbsp;&nbsp;&nbsp;007&nbsp;&nbsp;&nbsp;008&nbsp;&nbsp;&nbsp;</font></td></tr></table>
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<!-- ***** कृपया इस पंक्ति से ऊपर की ओर कोई बदलाव न करें। आप जो भी लिखना चाहते हैं -इस पंक्ति से नीचे लिखें। ***** -->
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==जितेंद्र कुमार का नाम कोश में शामिल कीजिए।==
  
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इन के बारे में [http://www.oneindia.com/2006/10/09/parents-salute-martyr-son-through-poems-and-pottery-1160372202.html इधर] पढ़िए। आपको जँचे तो इनका नाम शामिल कीजिए। वैसे इनकी किताबों में इन्होंने अपने नाम के आगे शर्मा नहीं लिखा है।
  
 
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—[[सदस्य:Sumitkumar|सुमितकुमार ओम कटारिया]] ([[सदस्य वार्ता:Sumitkumar|वार्ता]]) 15:50, 1 जून 2016 (CDT)
 
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Maine abhi kuchh din pahle kavita kosh ko internet par dekha, mujhe jaankar apaar harsh hua ki internet par hindi kavita ke kshetra mein itna kaam ho raha hai.. main bhi is site par kuchh yogdaan dena chahta hoon, kripaya mujhe is site par hindi main likhne ki vidhi batayein.
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sadhanyavaad
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sanjay shukla
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skshukla@bhelindustry.com
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:: हिन्दी मे लिखने के लिये मदद यहाँ से ले -
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http://blog.girionline.com/2007/02/blog-post_13.html
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अगर इसमे कुछ परेशानी हो तो यहाँ भी जा सकते है -
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http://merekavimitra.blogspot.com/2007/07/blog-post_1474.html
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प्रतिष्ठा
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achha hai. naam se hi kavita kosh hai. kahani kosh banane ki kisi prakar ki pahle ki baat aapne sochi hai?
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==सक्रिय योगदानकर्ताओं से==
 
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कविता कोश के सभी सक्रिय सदस्यों को मेरा नमस्कार! आशा है आप सभी स्वस्थ और सानंद होंगे। कविता कोश तेज़ी से प्रगति कर रहा है यह बहुत खुशी की बात है। इस प्रगति में आप सभी का योगदान सम्मिलित है। अब समय आ गया कि हम कोश की गुणवत्ता की ओर भी ध्यान दें। हमें केवल इस कोश में अधिकाधिक पन्नें नहीं बनाने हैं बल्कि परफ़ेक्ट पन्नें बनाने हैं। आप सभी सक्रिय सदस्य लम्बें समय से सक्रिय हैं अत: आपको अपने अनुभव का प्रयोग करते हुए परफ़ेक्ट पन्नें बनाने चाहिएँ।
Lalit Karma
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lalitkarma@rediffmail.com
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==स्वागत==
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कविता कोश में नये योगदानकर्ताओं का हार्दिक स्वागत है। कुछ कारणवश मैं पिछले कुछ दिन से कोश में कोई काम नहीं कर पाया। मैनें आज ही फिर से कार्य आरम्भ किया है। नये सदस्यों में प्रतिष्ठा जी का योगदान बहुत सराहनीय है। बहुत से नये सदस्य कोश के साथ जुड़े हैं। यह देख कर प्रसन्नता होती है। सामूहिक प्रयास से ही कविता कोश की प्रगति सम्भव है। आपका मित्र --'''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] ११:५९, ७ सितम्बर २००७ (UTC)'''
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हम कविता कोश के सदस्य, पाठक और योगदानकर्ता पूरे दो महीने बाद कविता कोश के सम्पादक और सिसओप भाई ललित कुमार की घर वापसी का स्वागत करते हैं । ललित जी दो महीने  बीमार रहे और कोश का काम नहीं देख पाए । अब लौट कर आए हैं । वे अब भी पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं लेकिन कविता कोश को अपना समय दे रहे हैं, इसके लिए हम उनके हार्दिक आभारी हैं और कामना करते हैं कि वे जल्दी से जल्दी पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएँ ताकि कोश को अधिक से अधिक समय दे सकें । कोश का सारा तकनीकी काम वे अकेले ही देखते हैं ।
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--'''--[[सदस्य: अनिल जनविजय। अनिल जनविजय]]१७:४६' ८ सितम्बर २००७ (UTC)'''
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:: धन्यवाद अनिल जी। अब कोश का काम तेजी से आगे बढा़ने की कोशिश करेंगे ताकि पिछले दिनों हुए कम काम की भरपाई हो सके। क्या आपको कनुप्रिया के सभी सर्गों की सिलसिलेवार सूची मिली? --[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] १३:०८, ९ सितम्बर २००७ (UTC)
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Lalit jii, mai kshmaa chaahtaa hun ki ab tak "kanupriyaa" mujhe nahin milii hai. lekin mai bhaartiijii kii kuchh duusrii lambii kavitaayen Kavitaa Koshmen daalne vaalaa hun.
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--'''[[sadasya : anil janvijay | anil janvijay]]17.46, 19 sitambar 2007 (UTC)'''
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श्री ललित जी, पिछले महीने ही मुझे कविता कोश का पता चला। आपके प्रयास के लिये साधुवाद । मेरा एक सुझाव है कि कुछ कवितायें/अंश जिनके कवि का नाम अज्ञात है,उन्हें अज्ञात या मुक्तक या विविध  के नाम से रखा जा सकता है ।अगर किसी सदस्य को उस पद्य/पद्यांश के कवि का नाम मालूम हो तो वे उसे सही जगह लगा दें ।*** संजीव द्विवेदी*(sandwivedi) * २६/९/२००७
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::संजीव जी, कविता कोश में इस तरह का पन्ना काफ़ी पहले से बना हुआ है। इसका लिंक [[कवियों की सूची]] के पन्ने के ऊपरी हिस्से में [[अन्य कविताएँ|अवर्गीकृत रचनाएँ]] के रूप में दिया गया है। --[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] २०:४०, २६ सितम्बर २००७ (UTC)
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मित्रों, हमारे कविता-कोश की नई और महत्त्वपूर्ण सदस्य बनी हैं प्रतिष्ठा जी । उन्होंने पिछले कुछ ही दिनों में इतना ज़्यादा और इतना अच्छा काम किया है कि हमें उनकी गति देखकर आश्चर्य होता है और गर्व भी । लगता है, जल्दी ही वे हम सभी को बहुत पीछे छोड़ देंगीं । प्रतिष्ठा जी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ । चलिए, आइए, उनसे एक स्वस्थ प्रतियोगिता करें और यह देखें कि कौन आगे रहता है । --'''--[[सदस्य: अनिल जनविजय। अनिल जनविजय]]२३:३९' २६ सितम्बर २००७ (UTC)'''
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maine aaj pahli baar is site ko dekha. achchca laga..
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rajan
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Lalit ji maine upar padha ki aapko Kanupriya nahi mili. Mere pas kanupriya hai. Kya mai aapki koi madad kar sakta hu? 6.11.2007 AMIT ARUN SAHU. Mob. 9822942202
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Lalit ji kavita kosh me jyadatar kaviyon ka jivan parichay diya hua nahi hai a Aaisa kyo? Kuch kaviyon ki to ek bhi kavita kosh me nahi hai , jaise Indivar ji ki . Iska kya karan hai? - AMIT ARUN SAHU 6.11.07
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Lalitji mere dimag me ek vichar aaya hai. Mumkin ho to koshish kijiyega ek aisa section banane ki jisme kavita,gazal, nazm, doha, chupai, muktak, sher, matla ityadi sankalpnao ka Arth samzaya ja sake. - Aapka fan AMIT ARUN SAHU
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==बधाई==
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प्रतिष्ठा ([[Pratishtha]]) अब कविता कोश में योगदान देने वाले व्यक्तियों की सूची में दूसरे स्थान पर आ पहुँची हैं। यह स्थान पाना सरल नहीं था -क्योंकि पिछले एक वर्ष में कई व्यक्तियों ने कोश में बहुत सा योगदान दिया है। प्रतिष्ठा ने यह मंज़िल काफ़ी कम समय में पा ली है। इसके लिये कविता कोश उनका आभारी रहेगा। अनिल जी ने सही कहा है कि योगदानकर्ताओं के बीच एक स्वस्थ प्रतियोगिता कोश के विकास में सहायक ही सिद्ध होगी। आइये प्रतिष्ठा को उनके श्रम के लिये धन्यवाद दें और इस मंज़िल तक आने के लिये बधाई दें। '''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] १६:५६, ११ अक्टूबर २००७ (UTC)'''
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'''माननीय ललितजी,
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मीरा कुमार की एक गजल ढूँढने के क्रम मे इस साईट तक पहुँचा. पता नही ऐसे एक कोष को मैँ कितने समय से ढूँढ रहा था. आपका कोटिश: धन्यवाद. कवियोँ की सूची मेँ सारे प्रमुख कवियोँ के नाम थे, किँतु राम नरेश त्रिपाठीजी का नाम नही देख कर निराशा हुई. अनुरोध है, इस कमी को पूरा कर देँ.'''
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::अजय जी, आपको कविता कोश अच्छा लगा इसकी हम सभी को खुशी है। त्रिपाठी जी के नाम को कोश में जोड़ने के प्रयास आरम्भ कर दिये गये हैं। '''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] १७:५२, १२ अक्टूबर २००७ (UTC)'''
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श्री ललित जी,
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"कोशिश करने वालों की " यह कविता संभवतः श्री हरिवंश राय जी की है,इसे निराला जी की कविताओं के अंतर्गत रखा गया है।कृपया जाँच लेगें। - संजीव द्विवेदी १२/१०/२००७
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::संजीव जी, इस रचना के रचनाकार के बारे में मतभेद है। कुछ लोग इसे [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]] जी की रचना बताते हैं और कुछ [[हरिवंशराय बच्चन]] जी की। यदि आपके पास इस दुविधा को दूर करने के लिये इस बारे में कोई प्रमाण हो तो कृपया बताइये। '''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] १७:५२, १२ अक्टूबर २००७ (UTC)'''
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"कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती" - मुझे पूरा यकीन है कि यह कविता "सूर्यकांत त्रिपाठी निराला" की है। मैने अपनी school book मे "निराला" के नाम से ही पढी थी।  मैने कभी नहीं सुना की ये "हरिवंशराय बच्चन" की है।
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Pratishtha
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मैंने कविता पढ़ी. भाषा-शैली स्पष्ट रूप से बच्चन जी की है, निराला की नहीं. मैं निराला रचनावली से देख कर बताता सकता हूँ.
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शिशिर
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==हिंदी विकिपीडिया से सहकार्य==
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हिंदी भाषा मै स्तरीय विश्वकोष स्थापनार्थाय विकिपीडिया का हिंदी अध्याय मै कार्य हो रहा है। विकिपीडिया मै अगर इस विकि का [[कवियों की सूची]] मै सूचीकृत पृष्ठौं को निर्यात हों सकें तो इन साहित्यकारौ के बारे मे विश्वकोशीय लेख लिखना सहज होगा। अत:, मेरा यह निवेदन है कि अगर इन पृष्ठौं का कोही डेटाबेस हों तो सहायता स्वरुप विकिपीडिया मै भी प्रदान कर दीजिए, अगर कोही डेटाबेस ना हों तो हमे इन लेखकौं के पृष्ठौं को हिंदी विकिपीडिया मै लगाने के अनुमति दीजिए। कष्ट के लिए क्षमा प्रार्थी हुं। धन्यवाद।--[[सदस्य:युकेश|युकेश]] २१:०१, १९ अक्टूबर २००७ (UTC)
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हिंदी विकिपीडिया के सरह अगर आप लोग यहां भी सरल देवनागरी इन्पुट को enable करें तो देवनागरी install ना करके भी लोग यहां पर सम्पादन कर पाएंगे। इस के लिए आप हिंदी विकिपीडिया के Mediawiki:monobook.js को देख सकते है।--[[सदस्य:युकेश|युकेश]] २१:०६, १९ अक्टूबर २००७ (UTC)
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नमस्कार युकेश,
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आपके संदेश के लिये बहुत धन्यवाद। कविता कोश को कई कारणों से विकिपीडिया का हिस्सा नहीं बनाया जा सकता। इस प्रोजेक्ट की अलग शुरुआत मुझे इसीलिये करनी पड़ी थी। अधिक से अधिक यह हिन्दी विकिसोर्स का हिस्सा बन सकता था -लेकिन अभी चूंकि कविता कोश इतना विकसित और सुस्थापित हो चुका है तो इस सारी प्रक्रिया का अधिक लाभ नहीं होगा।
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हिन्दी विकिपीडिया और कविता कोश -दोनो का सामान्य लक्ष्य एक ही है। हिन्दी भाषा को इंटरनैट पर हिन्दी को ऊँचा स्थान दिलाने में दोनो ही कोश सहायक हैं और आगे भी होंगे। कविता कोश को विकिपीडिया में मिला देने के व्यर्थ के श्रम से उत्तम यह होगा कि हिन्दी विकिपीडिया में लिंक्स के ज़रिये कविता कोश तक लोगो को पँहुचाया जाये। कोश में उपलब्ध [[कवियों की सूची]] नामक पन्ने को विकिपीडिया में दिया जा सकता है और वहाँ से लोगो को कविता कोश की ओर भेजा जा सकता है।
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आप उन पन्नों को -जहाँ लेखकों की रचनाओं की सूची दी जाती है (उदाहरण के लिये [[जयशंकर प्रसाद]]) विकिपीडिया में लेखक के बारे में लेख लिखते समय प्रयोग कर सकते हैं। कृपया इन पन्नों पर दिये गये लिंक्स को कविता कोश से ही जुड़ा रहने दें ताकि यदि लोग किसी लिंक पर क्लिक करें तो वे उस लिंक से कविता कोश में जुड़ी रचना तक पहुँच सकें और रचना पढ़ सकें।
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साथ ही आपके ज़रिये यह बात भी कहना चाहूँगा कि कविता कोश के पास बहुत कम संख्या में योगदानकर्ता हैं। हिन्दी विकिपीडिया में सैंकड़ो लोग योगदान देते हैं -यदि उनमें से किसी की हिन्दी काव्य में रूचि हो और वे भी यदि कविता कोश को आगे बढ़ाने में मदद करें तो यह कोश और भी तेजी से आगे बढ़ सकता है।
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शुभाकांक्षी
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'''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] ०९:३३, २० अक्टूबर २००७ (UTC)'''
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== एक काव्य मोती ==
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(ललित जी, आप सब बंधुओं के लिये-)
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मेरे जीवन की जागृति
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देखो फिर भूल न जाना
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जब 'वे' सपना बन आवें
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तुम चिरनिद्रा बन जाना!
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- महादेवी (नीहार)
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::धन्यवाद शिषिर जी '''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] ०९:३४, २० अक्टूबर २००७ (UTC)'''
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Har insan ka khushiyon se fasala ek kadam hai.
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Har ghar me bas ek hi kamara kam hai. -Javed Akhtar
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(Lalit ji aapke liye ye kavya moti.AMIT ARUN SAHU.6.11.07)
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==एक और मंज़िल==
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कल कविता कोश में पाँच हज़ार पन्ने पूरे हो गये। इसी से संबंधित एक पोस्ट कविता कोश ब्लॉग पर लिखी गयी है। आप इसे [http://kavitakosh.wordpress.com यहाँ] पढ़ सकते हैं।
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'''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] १०:२०, २१ अक्टूबर २००७ (UTC)'''
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==लोक गीत==
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कविता कोश में लोकगीतो को संकलित करने के लिये एक नया सैक्शन शुरु किया गया है। इस बाबत एक पोस्ट कविता कोश ब्लॉग पर लिखी गयी है।  आप इसे [http://kavitakosh.wordpress.com यहाँ] पढ़ सकते हैं। इस बारे में आपके सहयोग की आशा है। यदि कोई सुझाव हों तो बिना संकोच कहें।
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'''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] १५:१९, ११ नवम्बर २००७ (UTC)'''
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==बधाई==
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मित्रों और बन्धुओं !
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::हमारे परिवार में लगातार वृद्धि और विकास हो रहा है । हमारे कविता-कोश की एक सदस्य अचानक मुझे आज सिसओप के रूप में नज़र आईं । मुझे बेहद प्रसन्नता हुई । प्रतिष्ठा जी ने कोश में बड़ा काम किया है । अचानक वे जैसे आकाश से अवतरित हुईं और हम सब से बाज़ी मार ले गईं । मेरी बधाई । आपके आने से, प्रतिष्ठा जी !  यह कोश दिन दूनी रात चौगुनी गति से आगे बढ़े, यही कामना है । ललित जी को भी बधाई कि उन्होंने एक और सहयोगी को ढूंढ निकाला । एक और काम के लिए भी बधाई । वह यह कि कविता कोश में लोकगीतों और बालगीतों का संग्रह किया जाने लगा है । लेकिन बालगीतों को बाल कविता क्यों कहा गया है, यह समझ में नहीं आया । ललित जी, वैसे तो ये बालगीत भी नहीं हैं । बस, शिशुगीत हैं । बाल कविता का मतलब होता है-- बच्चों द्वारा लिखी गई कविताएँ । बालगीत का अर्थ है-- बच्चों के लिए गीत । ख़ैर, यह बहस का विषय है । यह संदेश तो मैंने बधाई देने के लिए लिखा है । सो एक बार फिर से बधाई । --लीना नियाज
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::बधाई के लिये बहुत धन्यवाद लीना जी। प्रतिष्ठा ने कोश में जितना काम किया है उससे उनका सिसओप बनना तो तय था। आपकी तरह मुझे भी आशा है कि वे कविता कोश को इसी तरह आगे बढ़ाती रहेंगी। जहाँ तक शिशुगीत, बालगीत या बाल कविता की बात है -आपने मार्गदर्शन करके सहायता की है। यह सैक्शन अभी अपने निर्माण के प्रारंभिक चरण में ही है -सो इस तरह की त्रुटियाँ अभी सुधर जाये तो बेहतर है। मैं प्रो. अनिल जनविजय सहित बाकी लोगों से इस बाबत अपने विचार रखने का आग्रह करता हूँ। आप प्रो. जनविजय को तो जानती ही होंगी, लीना जी। '''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] १९:०७, २२ नवम्बर २००७ (UTC)'''
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:::: धन्यवाद लीना जी । सब लोगो को मुझ से इतनी आशा है, कभी कभी सोच कर डर लगता है । मेरा प्रयास रहेगा कि सभी कि अपेक्षानुरुप कार्य करु । '''--[[सदस्य:Pratishtha | Pratishtha]] २२ नवम्बर २००७ (UTC)'''
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अनिल जनविजय जी के नाम से अभी तक तो एक कवि के रूप में ही मेरा परिचय था, लेकिन अब आप से पता लगा कि वे प्रोफ़ेसर भी हैं । वे मास्को विश्वविद्यालय में पढ़ाते ज़रूर हैं लेकिन प्रोफ़ेसर तो वे नहीं हैं । वे एक सच्चे कवि और अच्छे इन्सान हैं, प्रोफ़ेसर में जो बड़प्पन, जो गुरूर छिपा है, वह उनमें कहाँ । वे कवियों की तरह सहज और सरल हैं । लगता है, ललित जी, आपने उन्हें प्रोफ़ेसर बना दिया है । वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि वे मेरे अध्यापक रह चुके हैं ।---लीना नियाज
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::लीना जी, प्रोफ़ेसर होना ग़ुरूर नहीं वरन ज्ञान की निशानी है। खैर, मुझे नहीं पता था कि आधिकारिक रूप से अनिल जी प्रोफ़ेसर नहीं हैं -पर इससे क्या फ़र्क पड़ता है? जैसा कि मैनें कहा कि ये तो ज्ञान की निशानी है। '''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] १२:४४, २४ नवम्बर २००७ (UTC)'''
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==भक्ति काव्य==
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प्रतिष्ठा ने भक्ति काव्य का एक अलग सैक्शन बनाने का प्रस्ताव रखा है। इसमें आरती, भजन और श्लोक इत्यादि शामिल होंगे। प्रतिष्ठा ने इस सैक्शन का नाम "भारतीय सांस्कृतिक गीत" सुझाया है -नाम ठीक है पर चूंकि श्लोक गीत नहीं होते -सो मेरे विचार में "भक्ति काव्य" अधिक उचित होगा। कृपया आप इस सैक्शन और इसके नाम के बारे में अपनी राय दें। '''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] १३:२६, २४ नवम्बर २००७ (UTC)'''
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:: 'भक्ति काव्य' नामक एक अलग ही धारा हिन्दी कविता में है, जो आगे चल कर 'सगुण भक्ति काव्य' धारा और 'निर्गुण भक्ति काव्य' धारा में विभक्त हो जाती है । फिर बाद में इन धाराओं का भी कई-कई अन्य धाराओं में विभाजन होता है। अत: मेरे विचार में इस तरह की रचनाओं के लिए 'भक्ति काव्य' नाम से सैक्शन बनाना तो पूरी तरह से ग़लत होगा । आरती और भजन किसी भी रूप में 'भारतीय-संस्कृति' का तो प्रतिनिधित्व पूरी तरह से नहीं करते हैं, हाँ 'हिन्दू संस्कृति' का प्रतिनिधित्व वे करते हैं । 'भारतीय-संस्कृति' तो विभिन्नता में एकता की ज़ोरदार मिसाल है । मेरे ख़्याल से इसे 'भारतीय धार्मिक काव्य' कहना उचित होगा । इससे हिन्दी की 'भक्ति कविता' और 'धार्मिक कविता' का अन्तर स्पष्ट हो सकेगा । ---लीना नियाज
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"भक्ति काव्य" एक अत्यंत सुंदर नाम है. यदि लीना जी का तर्क मान लिया जाये, तो (उनके कहे अनुसार ही) यह "भारतीय धार्मिक काव्य" के बजाय " हिन्दू काव्य" कहा जाना चाहिये! यह नाम कवित्वहीन एवम् खतरनाक है!
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यह सच है कि हिन्दी साहित्य में भक्ति काव्य का एक रूढ़ अर्थ है, पर लीना जी, मैं आपका ध्यान इस ओर भी दिलाना चाहूँगा कि अनेक भक्त कवियों की रचनायें ही आज भी भजनों में गायी जाती हैं.
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"भक्ति काव्य" नाम श्रेष्ठ है. इससे आचार्य शुक्ल द्वारा किये गये वर्गीकरण का विस्तार भी होगा. यही नहीं, जो आज् भक्ति काव्य को "विगत वैभव" एवम् वर्तमान काव्य को केवल "भुक्ति काव्य" मानते हैं, वे देख पायेंगे कि वर्तमान काल में भी भक्ति-काव्य की धारा निर्विच्छिन्न है. ब्रह्मानंद सरीखे कवि (पिछली शताब्दी के) एवम् महादेवीजी की रहनाओं में भी भक्तिकाव्य ही बोल रहा है. "ओम् जय जगदीश हरे" आज घर-घर में गायी जाती है. क्या यह भी भक्ति-काव्य नहीं है?
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वस्तुतः, "वर्तमान युग में भक्ति-काव्य की पहचान" यह कविता कोश का एक बड़ा एवम् मौलिक योगदान होगा.
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-shishir
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मैं कविता-कोश में मुस्लिम, ईसाई, पारसी, जैन, सिक्ख और अन्य धर्मों के धार्मिक और पूजा गीत और भजन भी सम्मिलित करने के पक्ष में हूँ । अगर आप लोगों की सहमति हो तो मैं यह काम शुरू कर दूँ ।-लीना नियाज
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'''[[सफ़र हो शाह का या क़ाफ़िला फ़क़ीरों का / अतुल अजनबी]]''' जैसे बने पन्नें कोश में स्वीकार्य नहीं हैं। इस ग़ज़ल में शे’रों के बीच दिए गए डॉट्स को हम कोश में कहीं भी प्रयोग नहीं करते। हमें इस तरह का कॉपी-पेस्ट-कार्य से आगे बढ़कर परफ़ेक्ट पन्नें बनानें होंगे। ऐसे पन्नें को बनाने का कोई बहुत अधिक फ़ायदा नहीं है जिसे अन्य लोगों को सुधारना पड़े। हम सभी के पास समय की कमी है –अत: हमें चाहिए कि चाहे हम कम पन्नें बनाएँ –लेकिन परफ़ेक्ट पन्नें बनाएँ।
  
::जरुर। मैने भी यही सोचा था। आरती और भजन तो सिर्फ शुरुआत थी। आप काम शुरु कर सकती है। - प्रतिष्ठा
+
'''[[कविता कोश के मानक]]''' पन्नें पर दी गई बातों का हर पन्नें पर अक्षरश: पालन करने से भी हम कोश के मानकीकरण की दिशा में आगे बढ़ सकेंगे। कोश में सभी पन्नों पर जितनी अधिक हो सके उतनी अधिक समानता बहुत ज़रूरी है। अगर हम मानक गलत बनाते हैं लेकिन उस मानक का अक्षरश: पालन करते हैं तो बाद में ग़लती समझ आने पर सब कुछ सुधारना अपेक्षाकृत आसान होता है। इसके उलट अगर हम विभिन्न पन्नों पर मन-माफ़िक काम करेंगे और हर पन्नें पर अलग ही किस्म की ग़लतियाँ नज़र आएंगी तो हमें इन ग़लतियों को सुधारने में बहुत अधिक समय नष्ट करना पड़ेगा।
  
==यही त्रिलोचन है...==
+
कॉपी-पेस्ट आसान काम है –लेकिन कविता कोश के अनुभवी योगदानकर्ताओं से अपेक्षा होती है कि वे आंख बंद करके कॉपी-पेस्ट ना करें।
  
चीर भरा पाजामा, लट लट कर गलने से<br>
+
कोश में नई टेम्प्लेट बनाने से पहले हमें बहुत कुछ सोचना होता है। नई टेम्प्लेट या तो ना बनाए –या फिर बनाने से पहले मुझसे उसके बारे में चर्चा कर लें।
छेदोंवाला कुर्त्ता, रूखे बाल, उपेक्षित<br>
+
दाढ़ी-मूँछ, सफाई कुछ भी नहीं, अपेक्षित<br>
+
यह था वह था, कौन रूके ठहरे, ढलने से<br>
+
पथ पर फुर्सत कहाँ। सभा हो या सूनापन<br>
+
अथवा भरी सड़क हो जन-जीवन-प्रवाह से,<br>
+
झिझक कहीं भी नहीं, कहीं भी समुत्साह से<br>
+
जाता है। दीनता देह से लिपटी है, मन<br>
+
तो अदीन है। नेत्र सामना करते हैं, पथ<br>
+
पर कोई भी आये। ओजस्वी वाग्धारा<br>
+
बहती है, भ्रम-ग्रस्त जनों को पार उतारा<br>
+
करती है, खर आवर्तों में ले लेकर मथ<br>
+
देती है मिथ्याभिमान को। यही त्रिलोचन <br>
+
है, सब में, अलगाया भी, प्रिय है आलोचन।<br><br>
+
:::प्रगतिशील काव्य धारा के प्रमुख स्तम्भों में से एक त्रिलोचन जी अब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनका काव्य हमे हमेशा मानवीय सरोकारों के प्रति चेताते रहेगा। काव्य-कोश चौपाल के माध्यम से मैं उन्हे अपनी श्रद्धांजली अर्पित करता हूँ। (हेमेन्द्र कुमार राय, 10 दिसंबर,2007)
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आदरणीय त्रिलोचन जी का निधन हो गया, यह जानकर मैं बहुत उद्वेलित हुआ हूँ । त्रिलोचन जी से कभी मेरी बहुत गहरी दोस्ती थी । तब मैं सिर्फ़ बीस-इक्कीस साल का था और त्रिलोचन जी साठ-इकसठ के । उनके साथ मेरी ख़ूब घुटती थी । मैं दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ता था । और उन्हीं की तरह फक्कड़ था । उनसे मेरी मुलाकात बाबा नागार्जुन ने कराई थी । त्रिलोचन जी दिल्ली विश्वविद्यालय में उर्दू-हिन्दी शब्दकोश की किसी परियोजना में काम कर रहे थे । बस, मैं रोज़ सवेरे उनके दफ़्तर पहुँच जाता और देर शाम तक उन्हीं के साथ रहता । कितनी ही बार ऎसा हुआ कि मुझे चाय तक त्रिलोचन जी पिलाते थे क्योंकि उन दिनों मेरे पास चाय तक के पैसे नहीं होते थे । जब उनके पास भी पैसे नहीं होते थे, तो वे मुझे देख कर बड़े बेचैन हो जाते थे । उनकी वह बेचैनी मुझ से देखी नहीं जाती थी । लेकिन उनकी बातों का रस ही मेरा पेट भरने के लिए काफ़ी होता था ।
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लालित्य इंटरनेशनल के ज़रिए प्राप्त हुई धनराशी की मदद से कविता कोश को एक बेहतर सर्वर पर स्थानांतरित किया जा चुका है। वेबसाइट के कोड में भी मैंने बहुत-से बदलाव किए हैं। इस सबके चलते वेबसाइट पहले के मुकाबिले बेहतर हुई है लेकिन अभी भी कई समस्याएँ आड़े आ जाती हैं। मेरी कोशिश रहती है कि कविता कोश लगातार पाठकों को उपलब्ध रहे।
  
एक बार मैं दो दिन का भूखा था । पता नहीं कैसे यह बात त्रिलोचन जी भाँप गए थे । उस दिन उन्होंने मुझे अपने साथ चलने और खाना खाने का निमंत्रण दिया । त्रिलोचन जी उन दिनों दिल्ली में माडल टाऊन में एक मकान के तिमंज़िले पर किराए पर रहते थे । दो छोटे-छोटे कमरे थे, जिनमें से एक कमरा बहुत छोटा-सा था, जिसमें अम्माँ (त्रिलोचन जी की पत्नी, जिन्हें मैं अम्माँ कहकर ही पुकारता था) ने रसोई बना रखी थी । तो उस दिन हम दोनों दिल्ली विश्वविद्यालय से पैदल चलकर जब त्रिलोचन जी के घर माडल टाउन में पहुँचे तब-तक अंधेरा हो चुका था । समय होगा यही कोई आठ बजे का । अम्माँ त्रिलोचन जी को देख कर कुछ बुड़बुड़ाने लगी थीं । त्रिलोचन जी ने पहले ख़ुद अपने हाथ और मुँह धोया और फिर मुझ से हाथ-मुँह धोने को कहा । मैं हाथ-मुँह धो ही रहा था कि तब तक त्रिलोचन जी ने अम्माँ को यह बता दिया-- "अनिल भी आज हमारे साथ ही खाना खाएंगे" । बस अम्माँ  का गुस्सा सातवें आसमान पर था । अम्माँ ज़ोर-ज़ोर से त्रिलोचन जी को डाँटने लगीं । पता यह लगा कि त्रिलोचन जी एक दिन पहले शाम को घर से यह कहकर निकले थे कि वे आटा लेने जा रहे हैं और उसके बाद फिर अगले दिन मेरे साथ ही घर में घुसे थे । वे भूल गए थे कि आटा भी लाना है । अम्माँ दो दिन से भूखी थीं । और खुद त्रिलोचन जी भी । त्रिलोचन जी ने मुझे बताया कि बात यह नहीं है । उनका ख़्याल था कि इतना आटा तो घर में था ही कि तीन चार दिन निकल जाएँ । इसलिए उन्होंने चिन्ता नहीं की । लेकिन अब क्या हो ? न आटा ही घर में था और न ही जेब में कानी-कौड़ी । कुछ देर तक त्रिलोचन जी अम्माँ से बहस करते रहे । फिर मुझे लेकर निकल पड़े । बोले-चलो, तुम्हें खाना खिलाकर लाता हूँ । मैं मना करता रहा पर उन्होंने मेरी एक न सुनी । हम अजय सिंह के घर पहुँचे । रात के दस बज रहे थे । उन दिनों शमशेर जी अजय सिंह के साथ रहते थे । अजय सिंह भी वहीं माडल टाऊन में रहा करते थे । जब हम अजय जी के घर पहुँचे तो देखा कि उनके घर में सिर्फ़ एक ही कमरे की बत्ती जल रही है । त्रिलोचन जी ने डरते-डरते दरवाज़ा खटखटाया । एक बार कुंडी खड़खड़ाने पर ही तुरन्त ही दरवाज़ा खुल गया । दरवाज़े पर अजय जी थे । त्रिलोचन जी को देखकर आश्चर्यचकित हुए और कहा-- "अरे आप ? इतनी देर से ? क्या हो गया ? सब ठीक तो है न ?" त्रिलोचन जी ने कहा--"हाँ, सब ठीक-ठाक है । शमशेर जी हैं क्या ? जाग रहे हैं या सो रहे हैं ? बस, उनसे मिलने का मन हुआ और हम चले आए । इनसे मिलिए । इन्हें जानते हैं ? ये अनिल हैं । ये भी कविता लिखते हैं ।" अजय जी ने हमें अन्दर आने को कहा और शमशेर जी को बुलाने चले गए । शमशेर जी तब तक लेट चुके थे । लेकिन यह पता लगने पर कि त्रिलोचन जी मिलने आए हैं तुरन्त उठकर आए और पूछा-- "क्या बात है, सब ठीक तो है न ।" त्रिलोचन जी ने कहा--"हाँ, सब ठीक है । ये अनिल हैं । कविता लिखते हैं । आप से मिलना चाहते थे, इसलिए आपसे मिलवाने के लिए ले आया । फिर कुछ देर इधर-उधर की बातें होती रहीं । त्रिलोचन जी ने पूछा--"खाना-वाना हो गया ।" अजय जी ने बताया-- हाँ, सर्दियों के दिन हैं, इसलिए जल्दी ही खा लेते हैं ।" उसके बाद उन्होंने तुरन्त ही पूछा-- और आप लोगों ने खाना खा लिया । त्रिलोचन जी ने कहा--" हाँ, हमने भी जल्दी ही खा लिया था । इनका पता नहीं । इनसे पूछ लीजिए ।" मैंने भी यही बताया कि मैं खाना खा चुका हूँ । हालाँकि त्रिलोचन जी ने दो बार कहा मुझसे--"नहीं खाया हो तो खा लो ।" लेकिन मैंने दोनों बार यही कहा कि मैं खाना खा चुका हूँ । थोड़ी देर और बैठ कर हम लोग वहाँ से निकल पड़े । बाहर निकल कर त्रिलोचन जी ने मुझ से कहा--"आप तो खा ही सकते थे ।" मेरी आँखों में आँसू आ गए । मैंने कहा--"और आप भूखे रहते । घर पर अम्माँ भी तो भूखी हैं ।" इस पर त्रिलोचन जी ने कहा--"तो क्या हुआ...।" और फिर मौन धारण कर लिया । रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे । त्रिलोचन जी के घर तक हम दोनों एकदम मौन लौटे । घर पहुँचे तो अम्माँ जाग रही थीं । मुझे देखकर वे अपनी खाट से उठीं और रसोई में सोने के लिए चली गईं । रसोई में कोई चारपाई नहीं थी । उन्होंने ज़मीन पर ही अपनी दरी बिछा ली थी । यह देखकर मैं त्रिलोचन जी से कहता रहा कि मैं अपने घर चला जाऊंगा आप लोग सोईये । लेकिन त्रिलोचन जी ने मुझे नहीं लौटने दिया । कहा कि सवेरे चाय पी कर जाना । फिर मैंने कहा कि मैं ज़मीन पर दरी बिछा कर सो जाता हूँ । चारपाई पर अम्माँ सो जाएँ । मेरी इस बात पर त्रिलोचन जी ने अपनी चारपाई अम्माँ के लिए रसोई में बिछा दी । और अपनी दरी ज़मीन पर बिछा ली । फिर मेरे बार-बार कहने के बावजूद वे ज़मीन पर ही सोए । रात भर हम तीनों में से कोई नहीं सोया। कभी अम्माँ उठतीं । कभी त्रिलोचन जी । मैं तो करवटें बदल ही रहा था । सुबह होते ही त्रिलोचन जी ने अम्माँ से चाय बनाने को कहा । अम्माँ ने बताया कि खांड नहीं है और दूध भी । लेकिन फिर भी अम्माँ ने बिना चीनी और दूध की चाय मुझे पीने के लिए दी । मैंने वह चाय पी । सच मानिए उससे मीठी चाय मैंने आज तक नहीं पी है । उसमें स्नेह की जो मिठास घुली हुई थी, उस मिठास के लिए आज तक मन तरसता है । आज मैं पच्चीस बरस से मास्को में हूँ । तब मैं मास्को भी त्रिलोचन जी की बात मानकर ही आया था । अगर तब यहाँ न आया होता तो न जाने आज कहाँ होता ? ----सदस्य: अनिल जनविजय। अनिल जनविजय20.30' 10 दिसम्बर 2007 (UTC)
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मैं लालित्य इंटरनेशनल के ज़रिए कविता कोश हेतु धन-जुटाने की कोशिश में व्यस्त हूँ। अनुभव से समझ आया है कि यह अपने आप में एक मुश्किल और बड़ा काम है। बहरहाल, धन उपलब्ध होते ही 500 से अधिक पृष्ठों का निर्माण करने वाले सभी योगदानकर्ताओं को उनके कार्य के अनुपात में आर्थिक मानदेय अर्पित किया जाएगा। उम्मीद है कि इससे योगदानकर्ताओं को निजी जीवन में सहायता मिलेगी।
  
==स्वागत==
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कविता कोश को अब परफ़ेक्शन की ज़रूरत है। पन्नें बनाते समय कृपया इसका पूरा ध्यान रखें। पन्नों को बनाने के नियमों और मानकों का पालन नहीं करने पर मजबूरन योगदानकर्ता के अधिकारों को सीमित करना पड़ सकता है। ग़लती करें लेकिन ग़लती को दोहराएँ नहीं। ग़लती करके सीखना हम सभी के लिए बहुत ज़रूरी है।
  
महीनों बाद भाई हेमेन्द्र कुमार राय जी की घर-वापसी हुई है । बेहद प्रसन्नता की बात है कि अन्तत: वे फिर से कविता-कोश के लिए अपना समय दे रहे हैं । हम उन्हें बहुत याद करते थे । ख़ासकर लीना नियाज और ललित कुमार के साथ हम प्राय: हेमेन्द्र जी के बारे में चिन्तित हुआ करते थे कि अचानक कहाँ चले गए । अगस्त में मैं दिल्ली गया था तो कवि लीलाधर मंडलोई और कवि विष्णु खरे से मैंने उनके बारे में पूछा भी था कि कैसे हैं वे, ठीक तो हैं । भाई हेमेन्द्र जी आपका हार्दिक स्वागत है कि आप फिर से सक्रिय हुए और हिन्दी कविता के इस महा-अभियान में हमारे साथ हैं ।--'''--[[सदस्य: अनिल जनविजय। अनिल जनविजय]]०५:३० १९ दिसम्बर २००७ (UTC)'''
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आप सभी के लिए मंगलकामना सहित
  
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आपका ही
  
::हेमेन्द्र जी, आपका कविता कोश में एक बार फिर से स्वागत है। '''--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] ११:३१, २२ दिसम्बर २००७ (UTC)'''
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--[[सदस्य:Lalit Kumar|Lalit Kumar]] ([[सदस्य वार्ता:Lalit Kumar|वार्ता]]) 12:09, 23 जुलाई 2012 (IST)
  
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==मानकीकरण पृष्ठ पर समस्या==
  
भाई अनिल जी एवं ललित जी, पिछले दिनों आप सभी मुझे याद करते रहे, यह जानकर अच्छा लगा।पिछले कुछ महिनों से मेरी माताजी गंभीर रूप से अस्वस्थ थीं। अंततः 6 नवंबर को उन्होने इस संसार से विदा ले ली। मैं पूरी तरह उन्ही की देख-रेख में व्यस्त था। इस बीच कविता कोश ने अच्छी गति के साथ विकास किया है, बहुत से नये साथी भी जुड़े हैं,प्रतिष्ठा जी रिकार्ड-तोड़ कार्य कर रही हैं। कविता कोश नित नई ऊँचाइयों को छुए यही कामना है।--'''-[[सदस्य: हेमेन्द्र कुमार राय। हेमेन्द्र कुमार राय]] 22:38, 24 दिसम्बर 2007 '''
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आदरणीय महोदय
  
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कविताकोश के मानकीकरण पृष्ठ पर 'सितंबर' माह हेतु मानक शब्द 'सितम्बर' अंकित है जबकि किसी भी लेखक की जन्मतिथि  सितम्बर  लिखने पर बिना बने पन्ने के अनुरूप लाल रंग से चमकता है जबकि सितंबर लिखने पर वह बने पन्ने के अनुरूप नीले रंग का बना दिखता है [[अतुल अजनबी]] का पन्ना बनाने में यह समस्या प्रकट हुयी है कृपया इस ओर ध्यान देकर  इसे सही करने का कष्ट करें।
  
भाई हेमेन्द्र जी, आपने ये बेहद दुखद ख़बर सुनाई । माँ को खोना अपने भगवान को खोना है । हालाँकि माँ भगवान से भी बड़ी होती है । उम्र कोई भी हो माँ की, पर माँ को खोना सबसे बड़ा दुख है । मैंने अपने बचपन में ही माँ को गँवा दिया था । उसके बाद भयानक कष्ट उठाए । लेकिन उन कष्ट के दिनों में भी माँ की स्मृतियों और उनकी दी हुई सीखों ने मुझे बचाया । हम आपके इस दुख में आपके साथ हैं ।
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--[[सदस्य:Dr. ashok shukla|अशोक कुमार शुक्ला]] ([[सदस्य वार्ता:Dr. ashok shukla|वार्ता]]) 13:02, 24 जुलाई 2012 (IST)
--'''--[[सदस्य: अनिल जनविजय। अनिल जनविजय]]१०:५५ २४ दिसम्बर २००७ (UTC)'''
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02:20, 2 जून 2016 के समय का अवतरण

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जितेंद्र कुमार का नाम कोश में शामिल कीजिए।

इन के बारे में इधर पढ़िए। आपको जँचे तो इनका नाम शामिल कीजिए। वैसे इनकी किताबों में इन्होंने अपने नाम के आगे शर्मा नहीं लिखा है।

सुमितकुमार ओम कटारिया (वार्ता) 15:50, 1 जून 2016 (CDT)


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सफ़र हो शाह का या क़ाफ़िला फ़क़ीरों का / अतुल अजनबी जैसे बने पन्नें कोश में स्वीकार्य नहीं हैं। इस ग़ज़ल में शे’रों के बीच दिए गए डॉट्स को हम कोश में कहीं भी प्रयोग नहीं करते। हमें इस तरह का कॉपी-पेस्ट-कार्य से आगे बढ़कर परफ़ेक्ट पन्नें बनानें होंगे। ऐसे पन्नें को बनाने का कोई बहुत अधिक फ़ायदा नहीं है जिसे अन्य लोगों को सुधारना पड़े। हम सभी के पास समय की कमी है –अत: हमें चाहिए कि चाहे हम कम पन्नें बनाएँ –लेकिन परफ़ेक्ट पन्नें बनाएँ।

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कोश में नई टेम्प्लेट बनाने से पहले हमें बहुत कुछ सोचना होता है। नई टेम्प्लेट या तो ना बनाए –या फिर बनाने से पहले मुझसे उसके बारे में चर्चा कर लें।

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आप सभी के लिए मंगलकामना सहित

आपका ही

--Lalit Kumar (वार्ता) 12:09, 23 जुलाई 2012 (IST)

मानकीकरण पृष्ठ पर समस्या

आदरणीय महोदय

कविताकोश के मानकीकरण पृष्ठ पर 'सितंबर' माह हेतु मानक शब्द 'सितम्बर' अंकित है जबकि किसी भी लेखक की जन्मतिथि सितम्बर लिखने पर बिना बने पन्ने के अनुरूप लाल रंग से चमकता है जबकि सितंबर लिखने पर वह बने पन्ने के अनुरूप नीले रंग का बना दिखता है अतुल अजनबी का पन्ना बनाने में यह समस्या प्रकट हुयी है कृपया इस ओर ध्यान देकर इसे सही करने का कष्ट करें।

--अशोक कुमार शुक्ला (वार्ता) 13:02, 24 जुलाई 2012 (IST)