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"बीती रात का सपना / लावण्या शाह" के अवतरणों में अंतर

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मेरे दिल की धडकनोँ मेँ तेरी आवाज को पाया होगा
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ना होशो ~ हवास मेरे, ना जजबोँ पे काबु रहा होगा
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मेरी रुह ने, रोशनी मेँ तेरा जब, दीदार किया होगा !
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तेरे आफताब से चेहरे की उस जादुगरी से बँध कर,
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चुपके से, बहती हवा ने,भी, इजहार किया होगा
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फैल कर, पर्दोँ से लिपटी मेरी बाहोँ ने
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फिर् ,तेरे,मासुम से चेहरे को, अपने आगोश मेँ, लिया होगा
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..तेरी आँखोँ मेँ बसे, महके हुए, सुरमे की कसम!
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उसकी ठँडक मेँ बसे, तेरे, इश्को~ रहम ने,
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मेरे जजबातोँ को, अपने पास बुलाया होगा
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एक हठीली लट जो गिरी थी गालोँ पे,
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उनसे उलझ कर मैँने कुछ सुकुन पाया होगा
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तु कहाँ है? तेरी तस्वीर से ये पुछता हूँ मैँ.
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.आई है मेरी रुह, तुझसे मिलने, तेरे वीरानोँ मैँ
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बता दे राज, आज अपनी इस कहानी का,
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रोती रही नरगिस क्यूँ अपनी बेनुरी पे सदा ?
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चमन मेँ पैदा हुआ, सुखन्वर, यदा ~ कदा !!

16:20, 24 मई 2009 के समय का अवतरण

बीती रात का सपना, छिपा ही रह जाये,
तो वो, सपना, सपना नहीं रहता है!
पायलिया के घुँघरू, ना बाजें तो,
फिर,पायल पायल कहाँ रहती है?
बिन पँखों की उडान आखिरी हद तक,
साँस रोक कर देखे वो दिवा-स्वप्न भी,
पल भर मेँ लगाये पाँख, पखेरु से उड़,
ना जाने कब, ओझल हो जाते हैँ !
मन का क्या है? सारा आकाश कम है
भावों का उठना, हर लहर लहर पर,
शशि की तम पर पड़ती, आभा है !

रुपहली रातो में खिलती कलियाँ जो,
भाव विभोर, स्निग्धता लिये उर मेँ,
कोमल किसलय के आलिंगन को,
रोक सहज निज प्रणयन उन्मन से
वीत राग उषा का लिये सजातीँ,
पल पल में, खिलती उपवन मेँ !
मैं, मन के नयनो से उन्हेँ देखती,
राग अहीरो के सुनती, मधुवन मेँ,
वन ज्योत्सना, मनोकामिनी बनी,
गहराते संवेदन, उर, प्रतिक्षण मेँ !

सुर राग ताल लय के बँधन जो,
फैल रहे हैँ, चार याम, ज्योति कण से,
फिर उठा सुराही पात्र, पिलाये हाला,
कोई आकर, सूने जीवन पथ मेँ !

यह अमृत धार बहे, रसधार, यूँ ही,
कहती मैं यह जग जादू घर है !
रात दिवा के द्युती मण्डल की,
यह अक्षुण्ण अमित सीमा रेखा है

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तु कहाँ है? तेरी तस्वीर से ये पुछता हूँ मैँ. .आई है मेरी रुह, तुझसे मिलने, तेरे वीरानोँ मैँ बता दे राज, आज अपनी इस कहानी का, रोती रही नरगिस क्यूँ अपनी बेनुरी पे सदा ? चमन मेँ पैदा हुआ, सुखन्वर, यदा ~ कदा !!