भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"परतंत्रता की गाँठ / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' }} <poem> बीतीं दासता में पड़…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' | |रचनाकार=गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKAnthologyDeshBkthi}} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
बीतीं दासता में पड़े सदियाँ, न मुक्ति मिली | बीतीं दासता में पड़े सदियाँ, न मुक्ति मिली |
16:47, 4 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
बीतीं दासता में पड़े सदियाँ, न मुक्ति मिली
पीर मन की ये मन ही मन पिराती है
देवकी-सी भारत मही है हो रही अधीर
बार-बार वीर ब्रजचन्द को बुलाती है
चालीस करोड़ पुत्र करते हैं पाहि-पाहि
त्राहि-त्राहि-त्राहि ध्वनि गगन गुंजाती है
जाने कौन पाप है पुरातन उदय हुआ
परतन्त्रता की गाँठ खुलने न पाती है