"माँ के आँचल को / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} रचनाकारः रमा द्विवेदी Category:कविताएँ Category:रमा द्विवेदी ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार=रमा द्विवेदी | |
− | + | |संग्रह= | |
+ | }}{{KKCatKavita}} | ||
+ | {{KKAnthologyMaa}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं। | ||
+ | फूल से पंखुरी जैसे झरती रही॥ | ||
− | + | जन्म लेते ही माँ ने दुलारा बहुत, | |
+ | अपनी ममता निछावर करती रही। | ||
+ | मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥ | ||
− | + | वक़्त के हाथों में, मैं बड़ी हो गई, | |
− | + | माँ की चिन्ता की घड़ियाँ बढ़ती रहीं। | |
+ | मेरी साँ सों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥ | ||
− | + | ब्याह-कर मैं पति के घर आ गई, | |
− | + | माँ की ममता सिसकियाँ भरती रही। | |
− | मेरी | + | मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥ |
− | + | छोड़कर माँ को,दिल के दो टुकड़े हुए, | |
− | + | फिर भी जीवन का दस्तूर करती रही। | |
− | मेरी | + | मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥ |
− | + | वक़्त जाता रहा मैं तड़पती रही, | |
− | माँ | + | माँ के आंचल को मैं तो तरसती रही। |
− | मेरी सांसों की | + | मेरी सांसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥ |
− | + | एक दिन मैं भी बेटी की माँ बन गई, | |
− | + | अपनी ममता मैं उस पर लुटाती रही। | |
− | मेरी सांसों की | + | मेरी सांसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥ |
− | + | देखते-देखते वह बड़ी हो गई, | |
− | + | ब्याह-कर दूर देश में बसती रही। | |
− | मेरी | + | मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥ |
− | + | टूटकर फिर से दिल के हैं टुकड़े हुए, | |
− | + | मेरी ममता भी पल-पल तरसती रही। | |
− | मेरी | + | मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥ |
− | + | वक़्त ढ़लता रहा, सपने मिटते रहे, | |
− | + | इक दिन माँ न रही, मैं सिसकती रही। | |
− | मेरी | + | मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥ |
− | + | सब कुछ मिला पर माँ न मिली, | |
− | + | माँ की छबि ले मैं दिल में सिहरती रही। | |
− | मेरी | + | मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥ |
− | + | फूल मुरझा के इक दिन जमीं पर गिरा, | |
− | इक दिन | + | मेरी साँसों की घड़ियाँ दफ़न हो रहीं। |
− | मेरी | + | मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥ |
− | + | जीवन का नियम यूँ ही चलता रहे, | |
− | + | ममता खोती रही और मिलती रही। | |
− | + | मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥ | |
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | जीवन का नियम | + | |
− | ममता खोती रही और मिलती रही। | + | |
− | मेरी | + |
17:46, 26 जून 2017 के समय का अवतरण
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं।
फूल से पंखुरी जैसे झरती रही॥
जन्म लेते ही माँ ने दुलारा बहुत,
अपनी ममता निछावर करती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
वक़्त के हाथों में, मैं बड़ी हो गई,
माँ की चिन्ता की घड़ियाँ बढ़ती रहीं।
मेरी साँ सों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
ब्याह-कर मैं पति के घर आ गई,
माँ की ममता सिसकियाँ भरती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
छोड़कर माँ को,दिल के दो टुकड़े हुए,
फिर भी जीवन का दस्तूर करती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
वक़्त जाता रहा मैं तड़पती रही,
माँ के आंचल को मैं तो तरसती रही।
मेरी सांसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
एक दिन मैं भी बेटी की माँ बन गई,
अपनी ममता मैं उस पर लुटाती रही।
मेरी सांसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
देखते-देखते वह बड़ी हो गई,
ब्याह-कर दूर देश में बसती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
टूटकर फिर से दिल के हैं टुकड़े हुए,
मेरी ममता भी पल-पल तरसती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
वक़्त ढ़लता रहा, सपने मिटते रहे,
इक दिन माँ न रही, मैं सिसकती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
सब कुछ मिला पर माँ न मिली,
माँ की छबि ले मैं दिल में सिहरती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
फूल मुरझा के इक दिन जमीं पर गिरा,
मेरी साँसों की घड़ियाँ दफ़न हो रहीं।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
जीवन का नियम यूँ ही चलता रहे,
ममता खोती रही और मिलती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥