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[[सच की ज़ुबान / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
[[कविताएँ]] <br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
 
सच की नहीं होती ज़ुबान<br>
 
 
वह काट ली जाती है<br>
 
 
बहुत पहले-<br>
 
 
अहसास होते ही<br>
 
 
कि व्यक्ति<br>
 
 
किसी न कुसी दिन<br>
 
 
सच बोलेगा<br>
 
 
किसी बड़े आदमी का राज़ खोलेगा ।<br>
 
 
शुभ कर्म का<br>
 
 
नहीं होता कोई पथ<br>
 
 
जो इस पथ को पहचानते हैं<br>
 
 
वे इस पर चलने वाले<br>
 
 
हर कदम को रोक देना<br>
 
 
 
शुभ मानते हैं ; <br>
 
 
क्योंकि<br>
 
 
जो शुभ पथ पर चलेगा<br>
 
 
वह अशुभ की पगडण्डियाँ<br>
 
 
बन्द करेगा<br>
 
 
केवल भगवान से  डरेगा।<br>
 
 
बच नहीं सकते वे हाथ<br>
 
 
जो इमारत बनाते हैं<br>
 
 
किसी के भविष्य की , <br>
 
 
जो गढ़ते हैं ऐसा आकार-<br>
 
 
जिसकी छवि<br>
 
 
आँखों को बाँध ले<br>
 
 
 
जो बोते हैं धरती पर <br>
 
 
ऐसे बीज , <br>
 
 
जिनसे पीढ़ियाँ फूलें –फलें ।<br>
 
 
 
जो देते हैं  दुलार, <br>
 
 
जो बाँटते हैं प्यार, <br>
 
 
जो उठते हैं केवल <br>
 
 
आशीर्वाद के लिए<br>
 
 
जो बढ़ते हैं किसी की रक्षा में<br>
 
 
वे काट लिए जाते हैं  ; <br>
 
 
क्योंकि ऐसा न करने पर<br>
 
 
कुकर्म के अनगिन भवन<br>
 
 
ढह जाएँगे , <br>
 
 
टूट जाएँगी कई तिलिस्मी मूर्तियाँ ।<br>
 
 
तृप्त पीढ़ी रिरियाएगी नहीं<br>
 
 
दुलार ,प्यार और आशीर्वाद <br>
 
 
की छाया में पले लोग<br>
 
 
उनकी खरीद भीड़ नहीं बन सकेंगे ।<br>
 
 
 
…………………………………………………..
 
 
 
 
उजाले की खातिर मैं द्वार आया। <br>
 
 
शुक्रिया तुमने घर मेरा जलाया ..<br>
 
 
……………………………………………………………………………
 
 
 
 
 
[[कुछ दु:ख झेलो / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
[[कविताएँ]] <br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
कुछ दु:ख झेलो<br>
 
 
कुछ दु:ख ठेलो<br>
 
 
कुछ राम भरोसे छोड़ दो।<br>
 
 
दुख क्या बन्धु<br>
 
 
बहती नदिया<br>
 
 
नहीं एक तट रह पाती है।<br>
 
 
जिधर चाहती<br>
 
 
मुड जाती है<br>
 
 
सुख-दुख बहा ले जाती है।<br>
 
 
या धारा के संग तुम<br>
 
 
या धारा का मुख मोड़ दो।<br>
 
 
 
 
 
[[पुरानी कमीज़ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
[[कविताएँ]] <br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
मेरा बेटा<br>
 
 
जब कुछ बड़ा हुआ<br>
 
 
पहन लेता मेरे जूते<br>
 
 
कभी मेरी क़मीज़<br>
 
 
चेहरे पर आ जाती चमक<br>
 
 
नन्हें पैर - बड़े जूते<br>
 
 
छोटा कद , झूलती कमीज़<br>
 
 
और खुशी- छूती आसमान ।<br>
 
 
जब बराबर कद हो गया, <br>
 
 
मेरे जूते और कमीज़<br>
 
 
उसके हो गए ।<br>
 
 
आज मैंने पहन ली<br>
 
 
उसकी पहनी हुई कमीज<br>
 
 
थोड़ा चटख रंग वाली<br>
 
 
बेटे ने टोका -<br>
 
 
‘ये पुरानी कमीज़ है<br>
 
 
आपको जचती नहीं’<br>
 
 
और अगले दिन ले आया<br>
 
 
कीमती नई कमीज़-<br>
 
 
‘इसे पहनें<br>
 
 
खूब फबेगी आप  पर’<br>
 
 
वह नहीं चाहता कि<br>
 
 
उसका बाप  उतरन पहने ।<br>
 
 
वह चला गया अब दूर ऽ ऽ ऽ <br>
 
 
दूसरे शहर<br>
 
 
घर एकदम खाली –सा<br>
 
 
लगता है ।<br>
 
 
 
मैंने फिर पहन ली चुपके से<br>
 
 
उसकी वही पुरानी कमीज़<br>
 
 
जिसके रेशे -रेशे में<br>
 
 
बेटे की छुअन रमी है, <br>
 
 
उसका स्पन्दन<br>
 
 
धड़कता है मेरी शिराओं में<br>
 
 
उसके पसीने की गन्ध<br>
 
 
महसूस करता हूँ हर साँस में<br>
 
 
इस कमीज़ के आगे निर्जीव है<br>
 
 
नई कीमती कमीज़ ।<br>
 
 
 
 
 
 
 
[[मेरे मन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
[[कविताएँ]] <br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
मत उदास हो मेरे मन।<br>
 
 
 
जिनको तुम काँटे समझे हो<br>
 
 
वे तो प्यारे चन्दन वन ।<br>
 
 
जितना पथ तुम चल पाए हो<br>
 
 
वह भी क्या कम बतलाओ । <br>
 
 
जितना अब तक बन पाए  हो<br>
 
 
उस पर तो कुछ हरषाओ<br>
 
 
 
 
 
,
 
[[तुम मत घबराना / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
[[कविताएँ]] <br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
दुख के बादल आएँगे , <br>
 
 
छाएँगे , बरसेंगे ।<br>
 
 
यह जीवन की रीत है बन्धु <br>
 
 
 
तुम मत घबराना ।<br>
 
 
सन्त, महात्मा,  राजा, रानी <br>
 
 
सबका दौर रहा।<br>
 
 
दो पल बीते फिर धरती पर<br>
 
 
कहीं न ठौर रहा ।<br>
 
 
बिना पंख जो उड़े गगन में<br>
 
 
मुँह की खाएँगे ।<br>
 
 
आसमान क्या धरती पर भी <br>
 
 
ठौर न पाएँगे ।<br>
 
 
धूप-छाँव के जीवन में<br>
 
 
सदा सुखी है कोई ? <br>
 
 
कौन मरण से बच पाया है<br>
 
 
हमको बतलाना ।<br>
 
 
जो गर्दन पर छुरी चलाकर  <br>
 
 
माया जोड़ रहे <br><br>
 
 
अपनी किस्मत के घट को वे <br>
 
 
खुद ही फोड़ रहे ।<br>
 
 
बिस्तर पर वे  नोट बिछाकर <br>
 
 
क्या पाएँगे चैन<br>
 
 
कौन लूट ले या छीन ले<br>
 
इसमें कटती रैन ।<br>
 
 
केवल दो रोटी की भूख <br>
 
 
फिर भी हैं हलकान<br>
 
 
भूखों तक का कौर छीने<br>
 
 
दिखलाते हैMM  शान<br>
 
 
 
 
 
[[सदा कामना मेरी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
[[कविताएँ]] <br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
 
सदा कामना मेरी-<br>
 
 
कुछ अच्छा करने की<br>
 
 
सबका दुख हरने की ।<br>
 
 
हर फूल खिलाने की<br>
 
 
हर शूल हटाने की ।<br>
 
 
सदा कामना मेरी -<br>
 
 
हरियाली ले आऊँ<br>
 
 
खुशहाली दे पाऊँ ।<br>
 
 
नेह नीर बरसाऊँ<br>
 
 
धरती को सरसाऊँ ।<br>
 
 
सदा कामना मेरी-<br>
 
 
मैं सबकी पीर हरूँ<br>
 
 
आँधी में धीर धरूँ ।<br>
 
 
पापों से सदा डरूँ<br>
 
 
जीवन में नया  करूँ ।<br>
 
 
सदा कामना मेरी-<br>
 
 
नन्हीं पौध लगाऊँ<br>
 
 
सींच-सींच हरसाऊँ ।<br>
 
 
अनजाने आँगन को<br>
 
 
उपवन –सा महकाऊँ ।<br>
 
 
सदा कामना मेरी-<br>
 
 
हर मुखड़ा दमक उठे <br>
 
 
आँखें सब चमक उठें ।<br>
 
 
अधर सभी मुसकएँ<br>
 
 
मीठे गीत सुनाएँ ।<br><br>
 
 
 
[[उजाले / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
[[कविताएँ]] <br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
 
उम्र भर रहते नहीं हैं <br>
 
 
संग में सबके उजाले ।<br>
 
 
हैसियत पहचानते हैं <br>
 
 
ज़िन्दगी के दौर काले ।<br>
 
 
तुम थके हो मान लेते-<br>
 
 
हैं सफ़र यह ज़िन्दगी का ।<br>
 
 
रोकता रस्ता न कोई<br>
 
 
प्यार का या बन्दगी का ।<br>
 
 
हैं यहीं मुस्कान मन की<br>
 
 
हैं यहीं पर दर्द-छाले। <br>
 
 
तुम हँसोगे ये अँधेरा , <br>
 
 
दूर होता जाएगा  ।<br>
 
 
तुम हँसोगे रास्ता भी<br>
 
 
गाएगा मुस्कराएगा ।<br>
 
 
बैठना मत मोड़ पर तू<br>
 
 
दीप देहरी पर जलाले ।<br>
 
 
 
 
 
[[मैं खुश हूँ / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
[[कविताएँ]] <br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
मैं बहुत खुश हूँ<br>
 
 
मेरे मौला ;क्योंकि-<br>
 
 
मेरे पास धन नहीं ; <br>
 
 
जिसको रखने के लिए<br>
 
 
तिज़ौरी खरीदूँ , <br>
 
 
रातों की नींद लुटाकर<br>
 
 
पहरा दूँ , <br>
 
 
जिसके लुट जाने पर<br>
 
 
शोक मनाऊँ<br>
 
 
आँसू बहाऊँ ।<br>
 
 
मैं बहुत खुश  हूँ<br>
 
 
मेरे मौला ;क्योंकि-<br>
 
 
मेरे पास वह<br>
 
 
अहंकार नहीं है , <br>
 
 
जिसे ढोने  के लिए<br>
 
 
गाड़ी खरीदनी पड़े ।<br>
 
 
जिस पर खड़े होकर<br>
 
 
यह प्यार भरी दुनिया<br>
 
 
बौनी दिखाई दे<br>
 
 
और मैं खुद को महान्<br>
 
 
समझने की हिमाकत कर सकूँ ।<br>
 
 
मैं बहुत खुश हूँ <br>
 
 
मेरे मौला ;क्योंकि-<br>
 
 
मेरे ज़ेहन में सिर्फ़<br>
 
 
तेरा अहसास है , <br>
 
 
जो मुझसे कहता है-<br>
 
 
रहो इस दुनिया में<br>
 
 
इस तरह , <br>
 
 
जैसे कोई रहता हो दुनिया में <br>
 
 
अजनबी की तरह ।<br>
 
 
 
 
 
[[कर्मठ गधा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
[[कविताएँ]] <br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
घोड़ों का क़द ऊँचा है<br>
 
 
माना पद भी ऊँचा है ।<br>
 
 
गधा नहीं फिर भी कम है<br>
 
 
ढोता बोझ नहीं ग़म है ।<br>
 
 
घोड़ा रेस जिताता है<br>
 
 
कुछ जेबें भर जाता है ।<br>
 
 
जो-जो काम गधा करता<br>
 
 
घोड़ा कब कर पाता है ।<br>
 
 
धीरज का है रूप गधा<br>
 
 
नहीं क्रोध में जलता है ।<br>
 
 
खा-सूखा खाकर भी<br>
 
 
बड़ी मस्ती में चलता है ।<br>
 
 
 
मान-अपमान से परे गधा<br>
 
 
कभी नहीं शोक मनाता है ।<br>
 
 
अपने ऊँचे मधुर स्वर में<br>
 
 
गुण प्रभु के गाता है ।<br>
 
 
सुख-दुख से निरपेक्ष गधा<br>
 
 
सचमुच सच्चा संन्यासी है ।<br>
 
 
जिस हालत में भगवान रखे<br>
 
 
वही हालत सुख-राशि है ।<br>
 
 
गधा कर्म का पूजक है<br>
 
 
सुबह जल्दी उठ जाता है ।<br>
 
 
बीवी सोती रहती है<br>
 
 
गधा ही चाय बनाता है ।<br>
 
 
एसी चैम्बर में घोड़ा<br>
 
 
घण्टी खूब बजाता है ।<br>
 
 
गधा देर में जब सुनता<br>
 
 
तब घोड़ा चिल्लाता है ।<br>
 
 
दफ़्तर में जाकर देखो<br>
 
 
गधे डटकरके काम करें ।<br>
 
 
घोड़ा फ़ाइलों में छुपकर<br>
 
 
जब चाहे आराम करे ।<br>
 
 
घोड़ा खाता है तर माल<br>
 
 
गधा बस पान चबाता है ।<br>
 
 
चाहे जितना  भी थूके<br>
 
 
न पीकदान भर पाता है ।<br>
 
 
जिस दिन गधा नहीं होगा<br>
 
 
दफ़्तर बन्द हो जाएँगे ।<br>
 
 
आरामतलब जो भी घोड़े<br>
 
 
सारा बोझ उठाएँगे ।<br>
 
 
इसीलिए मैं कहता हूँ-<br>
 
 
गर्दभ का सम्मान करो ।<br>
 
 
राह-घाट में मिल जाए<br>
 
 
कभी न तुम अपमान करो ।<br>
 
 
 
 
 
 
 
 
[[हरियाली के गीत / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
[[कविताएँ]] <br>
 
 
 
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
 
 
 
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
 
 
{{KKGlobal}}<br>
 
 
मत काटो तुम ये पेड़<br>
 
 
हैं ये लज्जावसन<br>
 
 
इस माँ वसुन्धरा के ।<br>
 
 
इस संहार के बाद<br>
 
 
अशोक की तरह<br>
 
 
सचमुच तुम बहुत पछाताओगे ; <br>
 
 
बोलो फिर किसकी गोद में<br>
 
 
सिर छिपाओगे ? <br>
 
 
शीतल छाया<br>
 
 
फिर कहाँ से पाओगे ? <br>
 
 
कहाँ से पाओगे  फिर फल? <br>
 
 
कहाँ से मिलेगा ? <br>
 
 
सस्य श्यामला को <br>
 
 
सींचने वाला जल ? <br>
 
 
रेगिस्तानों में<br>
 
 
तब्दील हो जाएँगे खेत<br>
 
 
बरसेंगे कहाँ से <br>
 
 
उमड़-घुमड़कर बादल ? <br>
 
 
थके हुए मुसाफ़िर<br>
 
 
पाएँगे कहाँ से<br>
 
 
श्रमहारी छाया ? <br>
 
 
पेड़ों की हत्या करने से <br>
 
 
हरियाली के दुश्मनों को<br>
 
 
कब सुख मिल पाया ? <br>
 
 
यदि चाहते हो –<br>
 
 
आसमान से कम बरसे आग<br>
 
 
अधिक बरसें बादल , <br>
 
 
खेत न बनें मरुस्थल, <br>
 
 
ढकना होगा वसुधा का तन<br>
 
 
तभी कम होगी<br>
 
 
गाँव –नगर की तपन ।<br>
 
 
उगाने होंगे अनगिन पेड़<br>
 
 
बचाने होंगे<br>
 
 
दिन- रात कटते हरे- भरे वन ।<br>
 
 
तभी हर डाल फूलों से महकेगी<br>
 
 
फलों से लदकर<br>
 
 
नववधू की गर्दन की तरह<br>
 
 
झुक जाएगी<br>
 
 
नदियाँ खेतों को सींचेंगी<br>
 
 
सोना बरसाएँगी<br>
 
 
दाना चुगने की होड़ में<br>
 
 
चिरैया चहकेगी<br>
 
 
अम्बर में उड़कर<br>
 
 
हरियाली के गीत गाएगी<br>
 

15:29, 15 जून 2007 का अवतरण