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− | नीलेश रघुवंशी की पाँच कविताएँ | + | * [[ज़रा ठहरो / नीलेश रघुवंशी]] |
− | | + | * [[दुर्घटना / नीलेश रघुवंशी]] |
− | | + | * [[माँ / नीलेश रघुवंशी]] |
− | | + | * [[अभाव / नीलेश रघुवंशी]] |
− | ज़रा ठहरो
| + | * [[सत्रह साल की लड़की / नीलेश रघुवंशी]] |
− | | + | * [[किताब / नीलेश रघुवंशी]] |
− | इस मकान की पहली बरसात
| + | * [[चबूतरा / नीलेश रघुवंशी]] |
− | | + | * [[खिड़की / नीलेश रघुवंशी]] |
− | याद आ गई घर की ।
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− | छोटे भाई-बहनों को न निकलने की
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− | हिदायत देती हुई
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− | जल्दी-जल्दी बाहर से कपड़े
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− | समेट रही होगी माँ ।
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− | पिता चढ़ आए होंगे छत पर
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− | भाई निकल गया होगा
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− | साइकिल पर बरसाती लेने ।
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− | पानी ज़रा ठहरो छत को ठीक होने दो
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− | ले आने दो भाई को बरसाती ।
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− | दुर्घटना | + | |
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− | बच्चा बहुत ख़ुश होता है
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− | किलकारियाँ मारता है
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− | चलती ट्रेन को देखकर
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− | हो न जाए उसके सामने
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− | रेल-एक्सीडेंट ।
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− | माँ | + | |
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− | माँ बेसाख़्ता आ जाती है तेरी याद
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− | दिखती है जब कोई औरत ।
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− | घबराई हुई-सी प्लेटफॉ़म पर
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− | हाथों में डलिया लिए
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− | आँचल से ढँके अपना सर
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− | माँ मुझे तेरी याद आ जाती है ।
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− | मेरी माँ की तरह
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− | ओ स्त्री
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− | उम्र के इस पड़ाव पर भी घबराहट है
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− | क्यों, आख़िर क्यों ?
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− | क्यका पक्षियों का कलरव
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− | झूठमूठ ही बहलाता है हमें ?
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− | अभाव | + | |
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− | इस बार फिर मेरे बैग को
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− | मत टटोलना माँ
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− | तंगहाली के सपनों के सिवा
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− | कुछ नहीं है उसमें।
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− | जानती हूँ ख़ूब फबेगी तुझ पर वह साड़ी
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− | पर साड़ी सपनों से
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− | ख़रीदी नहीं जा सकती ।
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− | काश ख़रीद पाती मैं तुम्हारे लिए
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− | सिंदूर और साड़ी
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− | पिता के लिए नया कुर्ता
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− | भाई के लिए मफ़लर
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− | जबान होती बहन के लेए कुछ सपने ।
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− | ख़ाली जेबों में हाथ डाले
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− | हर रोज़ जाती हूँ बाजा़र
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− | और घंटों करती रहती हूँ वंडो-शॉपिंग ।
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− | सत्रह साल की लड़की | + | |
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− | सत्रह साल की लड़की के स्वपन में
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− | आसमान नहीं है
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− | पेड़, पहाड़ और तपती दोपहर नहीं
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− | सुबह की एक कआँच भी नहीं
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− | घर में फुदकती चिड़िया-सी लड़की
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− | सपना देखती है बसस
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− | अठारह की होने और घर बसाने का ।
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− | लड़की ने तलाशा सुख
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− | हमेशा औरों में
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− | खुद में कभी कुछ तलाशा ही नहीं
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− | सिखाया गया उसे हर वक़्त यही
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− | लड़की का सुख चारदीवारी के भीतर है
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− | सोचती है लड़की
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− | सिर्फ़ एक घर के बारे में ।
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− | लड़की जो घर की उजास है
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− | हो जाएगी एक दिन ख़ामोश नदी
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− | ख़ामोशी से करेगी सारे कामकाज
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− | चाल में उसके नहीं होगी
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− | नृत्य की थिरकन
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− | पाँव भारी होंगे पर थिरकेंगे कभी नहीं
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− | युगों-युगों तक रखेगी पाँव धीरे-धीरे
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− | धरती पर चलते
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− | धरती के बारे में कभी नहीं
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− | सोचेगी लड़की ।
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− | कभी नहीं चाहा लोगों ने
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− | लड़की भी बैठे पेड़ पर ख़ुद लड़की ने नहीं चाहा कभी
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− | चिडि़यों की तरह उड़ जाना
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− | नहीं चाहा छू लेना आकाश ।
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− | कभी नहीं देख पाएगी लड़की
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− | आसमान से निकलती नदी
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− | नदी से निकलते पहाड़
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− | पहाड़ों के ऊपर उड़ती चिड़िया
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− | नहीं आ पाएगी कभी
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− | लड़की की आँखों में ।
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− | ओ मेरी बहन की तरह
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− | सत्रह साल की लड़की
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− | दौड़ते हुए क्यों नहीं निकलत जाती
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− | मैदानों में
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− | क्यों नहीं छेड़ती कोई तान
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− | तुम्हारे सपनों में क्यों नहीं है
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− | कोई उछाल !
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− | किताब | + | |
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− | प्रकाशको, तुम करो किताबों का दाम
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− | किताबें नहीं हैं महँगी शराब
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− | पालो अपने अंदर इच्छा
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− | दौड़ पड़ें बच्चे किताबों के पीछे
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− | दौड़ते हैं जैसे तितनी पकड़ने को ।
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− | मैं रखना चाहती हूँ
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− | किताब को उतने ही पास
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− | जितने नज़दीक रहते हैं मेरे सपने
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− | किताबो, तुम साथ रहो
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− | हमारी अधूरी इच्छाओं के
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− | कहीं सिक्कों के जाल में
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− | गुम न हो जाये इच्छाओं का अकेलापन ।
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− | मैं उपहार में देना चाहती हूँ किताबें उन्हें
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− | जो होते-होते मेरे छिप गए
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− | लुका-छिपी के खेल में-
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− | उन्हें भी एक किताब
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− | जो हो नहीं सके मेरे कभी
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− | बाईस बरस की इस ज़िंदगी में
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− | लिख नहीं सकी एक किताब पर भी
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− | अपना नाम ।
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− | ओ महँगी किताबो
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− | तुम थोड़ी सस्ती हो जाओ
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− | मैं उतरना चाहती हूँ
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− | तुम्हारी इस रहस्यमयी दुनिया में ।
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− | तब भी
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− | तुम
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− | गए भी तो आँधी की तरह
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− | मैं
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− | बची रही लौ की तरह तब भी ।
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− | चबूतरा | + | |
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− | चबूतरे पर बैठी औरतें करती हैं बातें
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− | सिर-पैर नहीं कोई
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− | अनंत तक फैली
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− | कभी न ख़्तम होने वाली
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− | भर देती हैं कभी गहरी उदासी
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− | और खीकझ से ।
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− | निपटाकर कामकाज
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− | बैठी हैं घेरकर चबूतरा
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− | दमक रहे हैं सबके चेहरे
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− | चेहरे पर किसी के कुछ ज़्यादा ही नमक
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− | हाथ नहीं किसी के ख़ाली
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− | कहती है उनमें से एक
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− | बढ़ जाएगा क़द उसका एक इंच
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− | मिलती हैं सब उसकी हीँ में हीँ
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− | होती हैं खुश-
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− | निकलती है फिर नई बात ।
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− | क्या जन्मने से बच्चा बढ़ता है क़द ?
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− | क्यों नहीं बढ़ा फिर माँ का क़द ?
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− | बताती है बहन
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− | बढ़ता है क़द बेटा जन्मने से
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− | जन्मी हैं माँ ने आठ बेटियाँ ।
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− | बुझाकर बत्ती लेटते हैं हम बिस्तरे पर
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− | गहरी उदासी और अनमने भाव से
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− | सोचते हुए माँ के बारे में
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− | खींचे उसके जीवन के अनन्य चित्र
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− | भरे हम सबने पहली बार एक से रंग ।
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− | हमारे सपनों को सँजोती
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− | चिंता करती हमारे भविष्य की
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− | रहती है कैसी उतास
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− | बैठती नहीं कभी चबूतरे पर
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− | फ़ुर्सत से भरे कामों को निपटाते
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− | सोचती है वह हमारे घरों के बारे में ।
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− | खिड़की | + | |
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− | देर रात
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− | सो चुका है जब शहर
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− | अँधेरे के बीच टिमटिमाता है तारा
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− | खिड़की जो एक खुली हुई है
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− | है साथ तारे के ।
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− | कमरे और खिड़की के बीच का फ़ासला
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− | कमरे में है उदासी बावजूद रोशनी के ।
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− | भीतर खिड़की के क्या ?
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− | शायद
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− | डूबा हुआ हो कोई स्वप्न में
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− | पढ़ी जा रही हा कोई किताब
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− | सोच रहा है कोई सुबह के बारे में ।
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− | यह भी हो सकता है
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− | प्रतीक्षा में है कोई लड़की
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− | जाग रही है माँ निगरानी में ।
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