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"ख़्वाब समझें कि वाक़या समझें / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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पूछा उनसे कि आप चुप क्यों हैं
 
पूछा उनसे कि आप चुप क्यों हैं
हँस के बोले कि जो कहा, समझें
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हँसके बोले कि जो कहा, समझें
  
 
एक गर्दिश से दूसरी गर्दिश
 
एक गर्दिश से दूसरी गर्दिश

02:00, 10 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


ख़्वाब समझें कि वाक़या समझें
तू ही बतला कि तुझको क्या समझें

तू समझता रहे हमें कुछ भी
हम तुझे क्यों न दिलरुबा समझें

पूछा उनसे कि आप चुप क्यों हैं
हँसके बोले कि जो कहा, समझें

एक गर्दिश से दूसरी गर्दिश
ज़िन्दगी, बस ये सिलसिला समझें

तितलियाँ मुँह फिरा रही हैं, गुलाब!
अब है बदली हुई हवा, समझें