भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बात होनी थी, होके रही / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
गाँठ-सी बीच दो के रही! | गाँठ-सी बीच दो के रही! | ||
− | बचके निकले थे तुम तो, गुलाब | + | बचके निकले थे तुम तो, गुलाब! |
याद काँटे चुभोके रही | याद काँटे चुभोके रही | ||
<poem> | <poem> |
02:22, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
बात होनी थी, होके रही
हमको दुनिया से खोके रही
वह भले ही हमारे न हों
ज़िन्दगी उनकी होके रही!
रात किसकी लटें खुल गयीं
चाँदनी साँस रोके रही
कुछ न रिश्ता था उनसे, मगर
गाँठ-सी बीच दो के रही!
बचके निकले थे तुम तो, गुलाब!
याद काँटे चुभोके रही