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"बेझिझक, बेसाज़, बेमौसम के आ / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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और दम भर, और दम भर आँधियो! | और दम भर, और दम भर आँधियो! |
23:27, 12 अगस्त 2011 के समय का अवतरण
बेझिझक, बेसाज़, बेमौसम के आ
ग़म की बारिश है तो आ, फिर जमके आ
खूब झम-झमकर बरस काली घटा
यों न दम लेती हुई थम-थमके आ
हम उन्हें कैसे सुनाएँ दिल की बात!
कह रहे हैं, 'बोल पर सरगम के आ'
और दम भर, और दम भर आँधियो!
दो न दस्तक दर पे यों शबनम के आ
जोहना क्या मुँह बहारों का, गुलाब!
तुझको आना है तो बेमौसम के आ