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"तुझ लब की सिफ़त / वली दक्कनी" के अवतरणों में अंतर

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01:45, 28 जून 2008 का अवतरण

तुझ लब की सिफ़त लाल बदख्श़ाँ सूँ कहूँगा।
जादू है तेरे नैन ग़जाला सूँ कहूँगा।।

दी हक़ ने तुझे बादशाही हुस्न-नगर की।
यह किश्वरे ईराँ में सुलेमाँ सूँ कहूँगा।।

ज़ख्मी किया है मुझे तेरी पलकों की अनी ने।
ज़ख्म तेरा खंज़रे भालाँ सूँ कहूँगा।।

बेसब्र न हो ऐ 'वली'! इस दर्द सूँ हरगाह।
जल्दी सूँ तेरे दर्द की दरमाँ सूँ कहूंगा।।