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"कील / विपिन चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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माकूल जगह ढूँढ कर हमें   
 
माकूल जगह ढूँढ कर हमें   
ठीक बीचों बीच ठोक दिया     
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ठीक बीचों-बीच ठोक दिया     
पहले पहल बुरा नहीं मनाया किसी ने   
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पहले-पहल बुरा नहीं मनाया किसी ने   
कंधों में दर्द की परते धीरे- धीरे जमती चली गई
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कंधों में दर्द की परते धीरे-धीरे जमती चली गई
जुबाने पहले कंपकपाई फिर बंद होने के कागार तक पहुँच गयी
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ज़ुबानें पहले कँपकपाई फिर बंद होने के कगार तक पहुँच गईं
 
बहुत बाद में  काली आँखों वाला डर हमारा हमदम बन गया
 
बहुत बाद में  काली आँखों वाला डर हमारा हमदम बन गया
कील का नुकीला सिरा बार बार अपने होने का अहसास कराने लगा   
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कील का नुकीला सिरा बार-बार अपने होने का अहसास कराने लगा   
 
   
 
   
 
टाँग दिया गया हम पर  
 
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दुत्कार, अपमान, लांछनओ का भार   
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हमारे दामन को सफेद नहीं रहनें दिया कभी  
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हमारे दामन को सफ़ेद नहीं रहनें दिया कभी  
घाट पर घिस-घिस के धोया हमने खुद को
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घाट पर घिस-घिस के धोया हमने ख़ुद को
पर हर बार कालिख बची रह गयी
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पर हर बार कालिख़ बची रह गई
 
   
 
   
हमारी  फटी एडियाँ देखी तुंम्नें ?  
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हमारी  फटी एड़ियाँ देखी तुमने ?  
ज़रा मिलाना इन्हें अपने  पावों से  
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जो  चकाचक रहते है तुम्हारे कडकडाते जूतों में  
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जो  चकाचक रहते है तुम्हारे कड़कड़ाते जूतों में  
 
   
 
   
अपने जंग खाए हुये जीवन से ही  
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अपने जंग खाए हुए जीवन से ही  
मालुमात हुआ कि स्कैप से ज्यादा
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मालूम हुआ कि स्कैप से ज़्यादा
 
कुछ नहीं समझा गया हमें  
 
कुछ नहीं समझा गया हमें  
 
जो धोने, बिछाने, माँजनें और प्रतीक्षा का  काम हम करती रही है  उसे  
 
जो धोने, बिछाने, माँजनें और प्रतीक्षा का  काम हम करती रही है  उसे  
शुन्य जान कर खारिज़ किया जाता रहा   
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शून्य जान कर खारिज़ किया जाता रहा   
 
   
 
   
वह  तो रुखसत होता समय  कई बात चुपके से कान में कह गया
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वह  तो रुख़सत होता समय  कई बात चुपके से कान में कह गया
नहीं तो हम में से कई जान नहीं पाती अपने ही बगलगीरों की मक्कारियाँ
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नहीं तो हम में से कई जान नहीं पातीं अपने ही बगलगीरों की मक्कारियाँ
कुछ चीज़े यहाँ तक की आईना भी हमारे शक का कारण बना     
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कुछ चीज़ें यहाँ तक की आईना भी हमारे शक का कारण बना     
 
   
 
   
चक्रवात के आमने सामने बैठ कर जीवन का जो  मुहावरा गढ़ा हमने  
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चक्रवात के आमने-सामने बैठ कर जीवन का जो  मुहावरा गढ़ा हमने  
उसे सीधे सीधे बाँच लिया
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तुम्हारी नजरों से बचा कर
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हमारी पूरी जमात ने हर बार तुम्हारे ही सपनें देखे
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हमारी पूरी जमात ने हर बार तुम्हारे ही सपने देखे
यकिन मानों तुम्हारे सपनें ही हसीन थे
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यक़ीन मानों तुम्हारे सपने ही हसीन थे
 
तुम नहीं  
 
तुम नहीं  
 
   
 
   
जो पाठ हमारी दादी पडदादियों ने हमें सिखाया  
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जो पाठ हमारी दादी पड़दादियों ने हमें सिखाया  
तमाम उलटबासीयों और  खीँच- तान के बाद भी वह अपनी पकड बनाये रहा
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तमाम उलटबासियों और  खीँच-तान के बाद भी वह अपनी पकड बनाए रहा
एक मजबूत खूटें से बंधा रहना हमें सदा रास आता  
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एक मज़बूत खूटें से बँधा रहना हमें सदा रास आता  
 
न जाने हमारी तासीर कैसी थी
 
न जाने हमारी तासीर कैसी थी
हम लात-घूसे भी  खाती रही और
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हम लात-घूँसे भी  खाती रहीं और
 
खिलखिलाती भी रहीं
 
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और हम जैसा न बनने का प्रण लेते  
 
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इधर हमारा लोहा अपनी धार तेज़ करता रहा  
 
इधर हमारा लोहा अपनी धार तेज़ करता रहा  
भरभराई दीवार पर और मुस्तैदी से चस्पा होने के लिये।
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भरभराई दीवार पर और मुस्तैदी से चस्पा होने के लिए।
 
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16:58, 1 जून 2012 के समय का अवतरण

माकूल जगह ढूँढ कर हमें
ठीक बीचों-बीच ठोक दिया
पहले-पहल बुरा नहीं मनाया किसी ने
कंधों में दर्द की परते धीरे-धीरे जमती चली गई
ज़ुबानें पहले कँपकपाई फिर बंद होने के कगार तक पहुँच गईं
बहुत बाद में काली आँखों वाला डर हमारा हमदम बन गया
कील का नुकीला सिरा बार-बार अपने होने का अहसास कराने लगा
 
टाँग दिया गया हम पर
दुत्कार, अपमान, लाँछनों का भार
हमारे दामन को सफ़ेद नहीं रहनें दिया कभी
घाट पर घिस-घिस के धोया हमने ख़ुद को
पर हर बार कालिख़ बची रह गई
 
हमारी फटी एड़ियाँ देखी तुमने ?
ज़रा मिलाना इन्हें अपने पाँवों से
जो चकाचक रहते है तुम्हारे कड़कड़ाते जूतों में
 
अपने जंग खाए हुए जीवन से ही
मालूम हुआ कि स्कैप से ज़्यादा
कुछ नहीं समझा गया हमें
जो धोने, बिछाने, माँजनें और प्रतीक्षा का काम हम करती रही है उसे
शून्य जान कर खारिज़ किया जाता रहा
 
वह तो रुख़सत होता समय कई बात चुपके से कान में कह गया
नहीं तो हम में से कई जान नहीं पातीं अपने ही बगलगीरों की मक्कारियाँ
कुछ चीज़ें यहाँ तक की आईना भी हमारे शक का कारण बना
 
चक्रवात के आमने-सामने बैठ कर जीवन का जो मुहावरा गढ़ा हमने
उसे सीधे-सीधे बाँच लिया
तुम्हारी नज़रों से बचा कर
 
हमारी पूरी जमात ने हर बार तुम्हारे ही सपने देखे
यक़ीन मानों तुम्हारे सपने ही हसीन थे
तुम नहीं
 
जो पाठ हमारी दादी पड़दादियों ने हमें सिखाया
तमाम उलटबासियों और खीँच-तान के बाद भी वह अपनी पकड बनाए रहा
एक मज़बूत खूटें से बँधा रहना हमें सदा रास आता
न जाने हमारी तासीर कैसी थी
हम लात-घूँसे भी खाती रहीं और
खिलखिलाती भी रहीं
 
हमारे नौनिहास आश्चर्य से हमें ताकते
और हम जैसा न बनने का प्रण लेते
इधर हमारा लोहा अपनी धार तेज़ करता रहा
भरभराई दीवार पर और मुस्तैदी से चस्पा होने के लिए।