भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इन्सान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
हर खेल का मैदान यहाँ भी है वहाँ भी | | हर खेल का मैदान यहाँ भी है वहाँ भी | | ||
− | हिन्दू भी मज़े में | + | हिन्दू भी मज़े में है मुसलमाँ भी मज़े में |
इन्सान परेशान यहाँ भी है वहाँ भी | | इन्सान परेशान यहाँ भी है वहाँ भी | | ||
11:58, 7 मई 2020 का अवतरण
(पाकिस्तान से लौटने के बाद )
इन्सान में हैवान यहाँ भी है वहाँ भी
अल्लाह निगहबान यहाँ भी है वहाँ भी |
खूँख्वार दरिंदों के फ़क़त नाम अलग हैं
शहरों में बयाबान यहाँ भी है वहाँ भी |
रहमान की कुदरत हो या भगवान की मूरत
हर खेल का मैदान यहाँ भी है वहाँ भी |
हिन्दू भी मज़े में है मुसलमाँ भी मज़े में
इन्सान परेशान यहाँ भी है वहाँ भी |
उठता* है दिलो-जाँ से धुआँ दोनों तरफ़ ही
ये 'मीर' का दीवान यहाँ भी है वहाँ भी |
- देख तो दिल कि जाँ से उठता है, ये धुआँ सा कहाँ से उठता है--'मीर'