बैलों के ये बंधू वर्ष भर क्या जाने कैसे जीते हैं
बंधी जीभ, आँखें विषम गम खा शायद आँसू पीते हैं
पर शिशु का क्या, सीख न पाया अभी जो आँसू पीना चूस-चूस सूखा स्तन माँ का, सो जाता रो-विलप नगीना विवश देखती माँ आँचल से नन्ही तड़प उड़ जाती अपना रक्त पिला देती यदि फटती आज वज्र की छाती कब्र-कब्र में अबोध बालकों की भूखी हड्डी रोती है दूध-दूध की कदम-कदम पर सारी रात होती है दूध-दूध औ वत्स मंदिरों में बहरे पाषान यहाँ है दूध-दूध तारे बोलो इन बच्चों के भगवान कहाँ हैं दूध-दूध गंगा तू ही अपनी पानी को दूध बना दे दूध-दूध उफ कोई है तो इन भूखे मुर्दों को जरा मना दे दूध-दूध दुनिया सोती है लाऊँ दूध कहाँ किस घर से दूध-दूध हे देव गगन के कुछ बूँदें टपका अम्बर से हटो व्योम के, मेघ पंथ से स्वर्ग लूटने हम आते हैं दूध-दूध हे वत्स! तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं</poem>