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"इसी जनम में / संजय कुंदन" के अवतरणों में अंतर

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नींबू के टुकड़े को कस कर निचोड़ रहा हूँ दाल पर
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वह जो मन की चहचहाहट पर गुनगुनाता था
कि थोड़ा रुच जाए खाना
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मन की लहरों में डूबता-उतराता था
लंबे ज्वर से उठने के बाद खोज रहा हूँ फिर से स्वाद
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पकता रहता था मन की आँच में
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वह जो चला गया एक दिन
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मन के घोड़े की रास थामे
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साँवले बादलों में न जाने कहाँ
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वह मैं ही था
  
थोड़ा खट्टा रस फिर जोड़ सकता है अन्न से रिश्ता
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विश्वास नहीं होता
एक शीतल चमकदार नींबू पर इतनी ज्यादा टिक गई है उम्मीद कि
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यह इसी जनम की बात है।
लगता है वही मेरे कपड़े निकाल लाएगा
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मेरा चश्मा और थैला भी
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वह एक रिक्शे वाले को आवाज देगा और उसे हिदायत देगा
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इन्हें ठीक से ले जाना भाई
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13:50, 13 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

वह जो मन की चहचहाहट पर गुनगुनाता था
मन की लहरों में डूबता-उतराता था
पकता रहता था मन की आँच में
वह जो चला गया एक दिन
मन के घोड़े की रास थामे
साँवले बादलों में न जाने कहाँ
वह मैं ही था

विश्वास नहीं होता
यह इसी जनम की बात है।