{{KKRachna
|रचनाकार=दामोदर झा
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<poem>
सोना चानिक गोटीसँ कन्या सब खेलि करै छल
शाल दोशाला फाड़ि-फाड़ि कनिञ-पुतरा बनबै छल।।
4.
नवविवाहिता वधू जतय पतिकरसँ जँ छुटै छल
मणिमय दीप मिझयबालय व्यर्थे कपार पीटै छल।
मणि कुण्डलकेर प्रभा मानिनी गाल उपर पसरै छल
क्रोधे लालवदन लखितहुँ पतिमान तकर बिसरै छल।।
5.
रुचि1 छल जतए सतत मणिगणमे, नहि परतिय चम्बनमे
श्यामलता2 क्राड़ावनमे छल, नहि एकोजन मनमे।
छल कलंक शशिमण्डलमे, नहि श्रुतिगामी शुचि कुलमे
मधुपराजि3 नहि जनपदमे छल, केवल सुमन-मुकुलमे।।
</poem>
1. कान्ति तथा इच्दा, 2. कारी लती तथा मालिन्य, 3. भ्रमर तथा मद्यपायी
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