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"कहाँ हो मुक्तिदाता / असंग घोष" के अवतरणों में अंतर

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13:43, 4 जुलाई 2015 के समय का अवतरण

नाचता रहा दिन-ब-दिन
अपनों की ही उँगलियों पर
उनके इशारों के अनुरूप / तृप्त करता रहा
उनकी लालसाएँ
हरदम मारकर अपनी इच्छाएँ
जन्म से ही मज़बूत अदृश्य धागों में बँधा
मैं आज तक बँधुआ हूँ,
और तुम!
कहाँ चले गये हो
मुक्तिदाता?