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इन हवाओं को यह पता नहीं है
मुझमें ज्वालामुखी है
तुममें शीत का हिमालय हैहै। 
फूटा हूँ अनेक बार मैं,
पर तुम कभी नहीं पिघली हो,
जो गर्म हो
और मुझे उसकी जो ठण्डी!
 
फिर भी मुझे स्वीकार है यह परिस्थिति
जो दुखाती है
जो मुझे नीचे, तुम्हें उपर ले जाती है
काश! इन हवाओं को यह सब पता होता।
 
तुम जो चारों ओर
बर्फ़ की ऊँचाइयाँ खड़ी किए बैठी हो
(लीन... समाधिस्थ)
भ्रम में हो।
 
अहम् है मुझमें भी
चारों ओर मैं भी दीवारें उठा सकता हूँ
और बर्फ़ पिघलेगी
पिघलेगी!
 
मैंने देखा है
(तुमने भी अनुभव किया होगा)
मैदानों में बहते हुए उन शान्त निर्झरों को
जो कभी बर्फ़ के बड़े-बड़े पर्वत थे
लेकिन जिन्हें सूरज की गर्मी समतल पर ले आई.आई। 
देखो ना!
मुझमें ही डूबा था सूर्य कभी,
सूर्योदय मुझमें ही होना है,
मेरी किरणों से भी बर्फ़ को पिघलना है,
इसी लिए इसीलिए कहता हूँ-
अकुलाती छाती से सट जाओ,
क्योंकि हमें मिलना है।
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