भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आँखाभरि हिउँचुली / रमेश क्षितिज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रमेश क्षितिज |अनुवादक= |संग्रह= आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार= रमेश क्षितिज | |रचनाकार= रमेश क्षितिज | ||
|अनुवादक= | |अनुवादक= | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह= |
}} | }} | ||
{{KKCatNepaliRachna}} | {{KKCatNepaliRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
आँखाँभरि हिउँचुली छङ्छङ् बग्ने खोला | आँखाँभरि हिउँचुली छङ्छङ् बग्ने खोला | ||
फेरियो कि मेरो गाउँ अझै उस्तै होला ! | फेरियो कि मेरो गाउँ अझै उस्तै होला ! | ||
पंक्ति 20: | पंक्ति 19: | ||
जहाँ पहिलो पाइला टेकेँ मेरो गाउँघर | जहाँ पहिलो पाइला टेकेँ मेरो गाउँघर | ||
छोडी आएँ धेरै पर आँखैमा छ तर ! | छोडी आएँ धेरै पर आँखैमा छ तर ! | ||
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | <poem> | + |
20:27, 23 सितम्बर 2016 का अवतरण
आँखाँभरि हिउँचुली छङ्छङ् बग्ने खोला
फेरियो कि मेरो गाउँ अझै उस्तै होला !
पुल पनि भत्क्यो भन्छन् पाटीपौवा ढल्यो भन्छन्
यसपालिको डढेलोमा गाउँले–मन जल्यो भन्छन्
उकालीको एक्ले वर उस्तै छ कि सुक्यो
कप्तानबाको लडाइँको कथा कहाँ पुग्यो !
साथीभाइ कहाँ होलान् कस्ती होली सानी अचेल
सताउँदा मैले उसलाई रुन्थी पीर मानी टल्पल्
जहाँ पहिलो पाइला टेकेँ मेरो गाउँघर
छोडी आएँ धेरै पर आँखैमा छ तर !