भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घर से पहले घर / ब्रजेश कृष्ण" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रजेश कृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=जो...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 36: | पंक्ति 36: | ||
वहीं पर बना | वहीं पर बना | ||
अभी-अभी एक पूरा घर। | अभी-अभी एक पूरा घर। | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
</poem> | </poem> |
11:34, 17 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
घर बनाते हुए
सामान की देखभाल के लिए मैंने रखा एक मजूर
उसने वहीं कोने में लगाया एक छोटा तिरपाल
नीचे बिछाई थोड़ी-सी पुआल
महज़ तीन थैलों में उठाकर लाई गई गृहस्थी
और पीछे चलती हुई आई उसकी बच्ची और स्त्री
पास से उठाकर ईंटें चार बन गया चूल्हा
थोड़ी-सी सीलन
थोड़ा-सा धुआँ
थोड़ी कठिनाई भी
मगर उठी
आखि़र रोटी की आदिम गंध उठी
स्त्री ने बच्ची और पति को खिलाया
उसके बाद खु़द खाया
सामने के नल पर बर्तन धोये
तिनके की ओट में नहाया
थैले से निकाल कर आईना
कंघी की
बिन्दी रखी
बच्ची को चूमा
और हँसी
मेरा घर बनने से पहले ही बना
वहीं पर बना
अभी-अभी एक पूरा घर।